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Aptavani Shreni 4: आप्तवाणी श्रेणी ४
by Dada Bhagwanजो आप स्वयं हैं उसमे इतनी क्षमता है कि वह पूरी दुनिया को प्रकाशित कर सके। स्वयं में अनंत ऊर्जा है, फिर भी हम बहुत दुःख, कष्ट, मजबूरी और असुरक्षा का अनुभव करते हैं। यह बात कितनी विरोधाभासी हैं। हमें अपने स्वरूप की शक्ति और सत्ता का सही ज्ञान नहीं है। जब हम स्वयं जागृत हो जाते हैं तो हमें सारी सृष्टि के मालिक होने का एहसास होता है। आम तौर पर जिसे जागना कहा जाता है, ज्ञानी उसे निद्रा कहते हैं। सारा विश्व भावनिद्रा में डूबा हुआ है। जागृति या समझ की कमी की वजह से हम यह नहीं जान पाते कि इस दुनिया में और दूसरी दुनिया में हमारे लिए क्या लाभदायक है और क्या हानिकारक है। इस समय भावनिद्रा के कारण, अहंकार, मान, क्रोध, छलकपट, लोभ तथा अलग-अलग मान्यताओं और चिंता के कारण सब लोग मतभेद महसूस करते हैं। जिसे यह जागरूकता है कि ‘मैं जागृत हूँ’ और मन के विचार ‘स्व’से बिल्कुल अलग है, जिसे आत्मा के विज्ञान की अनुभूति हो गई, वह संसार में रहकर ही जीवन मुक्त हो जाता है। इस पुस्तक में ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री ने यह ज्ञान दिया है कि हम स्वयं के प्रति कैसे जागृत रहें, ध्यान, प्रारब्ध और स्वतंत्र इच्छा, घृणा तिरस्कार, अनादर स्वयं का सांसारिक धर्म, जीवनमुक्ति का लक्ष्य तथा कर्म का विज्ञान आदि के बारे में ज्ञान दिया है। जो लोग स्वयं का सही अर्थ जानने के उत्सुक हैं उन्हें यह पढ़ने से मुक्ति के पंथ पर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी और यह पढ़ाई उनकी जागृति बढ़ाएगी।
Aptavani Shreni 5: आप्तवाणी श्रेणी ५
by Dada Bhagwanव्यवस्थित शक्ति के द्वारा हमारे जीवन का समस्त सांसारिक व्यवहार डिस्चार्ज हो रहा है। हमारी पाँचों इन्द्रियाँ कर्म के अधीन हैं। कर्मों के बंधन का कारण क्या है? यह धारणा की कि ‘मैं चंदुलाल हूँ’ वह कर्म बंधन का मूल कारण है। सिर्फ सच (तथ्य) जानने की आवश्यकता है। यह एक विज्ञान है। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने पाँच ज्ञान इन्द्रियों तथा उनके कार्यों की प्रणाली के बारे में बताया है। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, यह सब इन्द्रियों के अलग-अलग कार्य हैं। फिर अपना कार्य करने में कौन असफल रहा? ‘स्व’ रहा। ‘स्व’ का कार्य है जानना, देखना और हमेंशा आनंदमय स्थिति में रहना। हर इन्सान ज़िंदगी के बहाव के साथ आगे बह रहा है। यहाँ कोई भी कर्ता नहीं है। अगर कोई स्वतंत्र कर्ता होता तो वह हमेंशा बंधन में ही रहता। जो नैमित्तिक कर्ता है वह कभी भी बंधन में नहीं रहता। संसार प्राकृतिक परिस्थितियों के प्रभाव से उत्त्पन्न परिणाम पर ही चलता है। ऐसी परिस्थिति में ‘मैं कर्ता हूँ’ की गलत धारणा की उत्पत्ति होती है। इस कर्तापन की गलत धारणा की वजह से अगले जन्म के बीज बोए जाते हैं। इस संकलन में परम पूज्य दादाश्री ने कर्म के विज्ञान, कर्तापन, पाँच इन्द्रियों, अहंकार, मनुष्यों का स्वभाव, ज्ञानियों के प्रति विनय, पापों का प्रतिक्रमण, प्रायश्चित इत्यादि विषयों के बारे में बताया है। यह समझ साधकों को स्वयं के बारे में व संसार में दूसरों से कैसे शांतिपूर्वक व्यवहार करें, इस बारे में मदद करती है।
Aptavani Shreni 6: आप्तवाणी श्रेणी ६
by Dada Bhagwanहममें से ज्यादातर लोग हमेशा एक समस्याका सामना कर रहें हैं | जिसमे एक तरफ व्यव्हारमें हरेक क्षण बाहरी प्रश्न खड़े होते हैं, और दूसरी तरफ अंदरूनी संघर्षमे भी फँसे हुए रहते हैं और अकेले हाथों से उनको हल करना होता है | हम जानते है की कभी - कभी हमारी वाणी के प्रश्न खड़े किये होते है, या हमको किसीने कुछ कहा इसलिए हम दुखी होते है, या तो हम दूसरेका बूरा सोचते है या फिर हमें लगता है हमारे साथ अन्याय हुआ है अथवा हम खुद ही अंदरसे शांतिका अनुभव नहीं कर सकते | सांसारिक जीवन व्यवहार वह समस्याओं का संग्रह्स्थान है | एक समस्या का हल आता है की पीछे और समस्या खड़ी हो जाती है | क्यूँ हमें ऐसी समस्याओंका सामना करना पड़ता है? क्यूँ हम अनंत जन्मोंसे भटकते रहते है? ‘अटकण’ की वजह से! हकीकतमे खुदके पास आत्माका परम आनंद था ही, परंतु खुद दैहिक सुखोंकी अटकणों में डूब गए थे | यह अटकण ज्ञानीपुरुषकी कृपा से और उसके बाद अपने पराक्रमसे टूट सकती है | एक बार आपको आत्मज्ञान होगा, तो जगत शांत हो जायेगा | यह जीवन दूसरों की व्यर्थ चर्चा मे व्यय करने के लिए नहीं है | यह जगत जैसा है वैसा है | उसमे आपको आपकी ‘खुद’की सेफ साइड ढूँढ निकालनी है | तो चलो, हम डूब की लगायें और जाने की यह अक्रम विज्ञान कैसे बंधन, कर्म, वाणी, प्रतिक्रमण, कुदरत के नियम ईत्यादि का विज्ञान समझने में उपयोगी है जिससे सर्व सांसारिक समस्याओं के तूफानो का डटकर सामना करना आसान हो जाए |
Aptavani Shreni 7: आप्तवाणी श्रेणी ७
by Dada Bhagwanप्रस्तुत ग्रंथ आप्तवाणी-7 में परम पूज्य दादाश्री की जीवन-व्यवहार से संबंधित बातचीत और प्रश्नोतरी द्वारा की गई वाणी का संकलन किया गया है। ज्ञानीपुरुष जीवन के सामान्य से सामान्य घटनाओं को भी असाधारण दृष्टि और समझ से देखते हैं। ऐसी घटनाएँ सुज्ञ वाचक को जीवन-व्यवहार में एक नई ही दृष्टि और नई ही विचारश्रेणी देती है। अलग-अलग विषयों पर यहाँ वर्णन किया गया है उनमें से कई हमें विचलित कर दे ऐसे हैं, जैसे कि जंजाली जीवन में जागृति, लक्ष्मी का चिंतवन, उलझनों में किस तरह शांतिपूर्वक रह सकें, टालो कंटाला, चिंता से मुक्ति, भय पर कैसे विजय पाएँ, कढ़ापा-अजंपा, शिकायतें, जीवन की अंतिम पलों में क्या होता है, क्रोध कषाय, अति गंभीर बीमारी में किस तरह समता रखें, पाप-पुण्य की परिभाषा, व्यवसाय-ऑफिस में रोज़मर्रा की समस्याओं का और इस तरह की जीवन में आती हुई कई परेशानियों का किस तरह हल करें। प्रस्तुत ग्रंथ में प्रकट ज्ञानीपुरुष की हृदयस्पर्शी वाणी का संकलन किया गया है कि जिसमें ऐसी कुछ घटनाओं को विगतवार प्रकाशित किया गया है, ताकि प्रत्येक सुज्ञ वाचक को खुद के जीवन-व्यवहार में एक नई ही दृष्टि, नये ही दर्शन से(समझ से) वैसे ही विचारक दशा की नई ही कड़ियों को खुली होने में मददरूप होगी, ऐसा अंतर-आशय है।
Aptavani Shreni 8: आप्तवाणी श्रेणी ८
by Dada Bhagwanइस पुस्तक में स्वयं के मूल गुणों के बारे में तथा अन्य शाश्वत तत्वों के बारे में बताया गया है। यह ज्ञान ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री जो की अक्रम विज्ञान के प्रणेता हैं, उनके द्वारा दिया गया है। ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जो लोगों के मन में अक्सर उठते हैं, जैसे- ‘मैं कौन हूँ?’ मुझे स्वयं के बारे में ज्ञान कैसे मिले या मैं स्वयं को कैसे जानूं? जन्म-मरण क्या है? आत्मा का वैज्ञानिक स्वरूप क्या है? इस प्रकार के अनेक सवालों के जवाब परम पूज्य दादाश्री ने इस किताब में पूर्ण संतुष्टता के साथ दिए हैं। सारे आध्यात्मिक शास्त्रों, उपदेशों और क्रियाओं का सार एक ही है –स्वयं को जानना (स्वयं के बारे में जागरूकता)। जो हम स्वयं हैं वह पूर्ण शुद्ध है, लेकिन ‘मैं कौन हूँ’ की धारणा गलत है। इस पुस्तक में यह गलत धारणा वर्तमान ज्ञानीपुरुष द्वारा दूर की गई है। पुस्तक अनेक भागों में विभाजित है जिसमें प्रथम भाग में दादाजी ने- ‘स्वयं’, उसके गुण तथा दूसरे भाग में स्वयं को जानने का रास्ता दिखाया है। इस पुस्तक में उन लोगों का मार्गदर्शन किया गया है जो स्वयं को जानना चाहते हैं और मुक्त होना चाहते हैं।
Atmabodh: आत्मबोध
by Dada Bhagwanप्रस्तुत संकलन में प्रकट प्रत्यक्ष ज्ञानी के स्वमुख से प्रवाहित आत्मतत्व, और अन्य तत्वों सम्बन्धी वास्तविक दर्शन खुला होता है| आत्मा के अस्तित्व की आशंका से लेकर, आत्मा क्या होगा, कैसा होगा, क्या करता होगा, जन्म मरण क्या है, किसके जन्म मरण, कर्म क्या है, चार गतियाँ क्या है, उसकी प्राप्ति के रहस्य, मोक्ष क्या है, सिद्धगति क्या है, जैसे अनेकों प्रश्नों के समाधान यहाँ पर हैं| जीव क्या है? शिव क्या है? द्वैत, अद्वैत, ब्रह्म, परब्रह्म, आत्मा की सर्वव्यापकता, कण कण में भगवान्, वेद और विज्ञानं वगैरह अनेक वेदान्त के रहस्य यहाँ पर अनावृत हुए हैं| तमाम शास्त्रों का, साधकों का, साधनाओ का सार एक ही है कि खुद के आत्मा का भान करना, ज्ञान प्राप्त कर लेना है| ‘मूल आत्मा’, तो शुद्ध ही है मात्र ‘खुद’ को रोंग बिलीफ बैठ गई है, प्रकट ‘ज्ञानीपुरुष’ के पास यह मान्यता छूट जाती है| जो कोटि जन्मों तक नहीं हो पाता, वह ‘ज्ञानी’ के पास से प्राप्त हो सकता है| विश्व में कभी कभार आत्मज्ञानी पुरूष अवतरित होते हैं, तभी यह आध्यात्मिक रहस्य खुल्ला हो पाता है| संसार में जो भी ज्ञान है, वह भौतिक ज्ञान है| उससे आत्म साक्षात्कार कभी नहीं हो सकता| ज्ञानीपुरुष को आत्मा का अनुभव होने से आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति हो सकती है| प्रस्तुत संकलन में संपूज्य श्री दादाश्री ने खुद के ज्ञान में ‘जैसा है वैसा’ आत्मा का स्वरुप और जगत का स्वरुप देखा है, जाना है, अनुभव किया है, उस सम्बन्ध में उनके ही श्रीमुख से निकली हुई वाणी का यहाँ पर संकलन किया गया है, जो अध्यात्म मार्ग में पदापर्ण करनेवालों को आत्मसमुख होने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी|
Bhavna Se Sudhare Janmo Janam: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म
by Dada Bhagwan९ कलमे, परम पूज्य दादा भगवान द्वारा दी गई अमूल्य भेट है| यह कलमे संसार के सभी शास्त्रों के ज्ञान को निचोडकर बनायीं हुई है जो भीतर से हमारे भावो में फेरबदल करती है और हमें एक आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती है| अक्सर लोग यह सोचते है कि, इस जीवन में उन्होंने किसीके साथ कुछ भी बुरा व्यवहार नहीं किया फिर भी क्यों उन्हें इतने सारे दुःख और तकलीफों का सामना करना पड़ता है| इसका जवाब देते हुए दादाजी बताते है कि, यह अभी का जो कुछ भी हो रहा है, वह तो सिर्फ परिणाम है, हमारे पिछले जन्मों में किये गए भावो का| और अभी हम जो भी नए भाव करेंगे उसका फल हमें आने वाले जन्मों में भुगतना रहेगा| यह ९ कलमे, हमें हमारे भीतर के भावो को बदलने में सहायरूप है जिससे हम अभी आनेवाली परेशानियों का सामना कर सके और अगले जन्मों के लिए कोई भी नयी परेशानियाँ खड़ी ना करे| हज़ारो लोगो को यह कलमे हर दिन बोलने से फायदा हुआ है| आप भी जान सकते है इस अभूतपूर्व विज्ञान को इस पुस्तक द्वारा|
Bhugate Uski Bhool: भुगते उसी की भूल
by Dada Bhagwanजो दुःख भोगे तो उसकी भूल और सुख भोगे तो उसका इनाम। लेकिन भ्रांति का कानून निमित्त को पकड़ता है। भगवान का कानून, रीयल कानून, तो जिसकी भूल होगी, उसको पकड़ेगा। वह कानून एक्ज़ेक्ट है और उसमें कोई परीवर्तन कर सके, ऐसा है ही नहीं। ऐसा कोई कानून जगत् में नहीं है जो किसी को ‘भुगतना’ [दुःख] दे सके। जब कभी हमें अपनी भूल के बिना भुगतना पड़ता है, तब हृदय को चोट लगती है, और वह पूछता है – मेरा क्या कसूर है ? मैंने क्या गलत किया ? भूल किसकी है ? चोर की या जिसका चुराया गया है उसकी ? इन दोनों में से कौन भुगत रहा है ? “जो भुगते उसीकी भूल”। प्रस्तुत संकलन में, दादाश्री ने “भुगते उसीकी भूल” का विज्ञान प्रकट किया है। इसे प्रयोग में लाने से आपकी सारी गुत्थियाँ सुलझ जाएँ, ऐसा अनमोल यह सूत्र है।
Samaj Se Prapt Brahmacharya (Sanxipt): समज से प्राप्त ब्रह्मचर्य (संक्षिप्त)
by Dada Bhagwanब्रम्हचर्य व्रत, भगवान महावीर द्वारा दिये हुए ५ महाव्रतो का हिस्सा है| मोक्ष प्राप्त करने ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करना चाहिए, यह समझ बहुत सारे लोगो में है पर विषय करना क्यों गलत है या उसमें से हम छुटकारा कैसे पा सकते है, यह सब कोई नहीं जानता| विषय यह हमारी पाँचो इन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय को पसंद नहीं आता| आँखों को देखना अच्छा नहीं लगता, नाक को सूंघना पसंद नहीं, जीभ से चख ही नहीं सकते और ना ही हाथ से छू सकते है| पर फिर भी सच्चा ज्ञान नहीं होने के कारण लोग विषय में निरंतर लीन होते है क्योंकि उन्हें इसके जोख्मों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है| अपने हक्क के साथी के साथ भी विषय करने में अनगिनत सूक्ष्म जीवों का नाश होता है और अनहक्क के विषय का नतीजा तो नरकगति है| इस पुस्तक द्वारा आपको ब्रम्हचर्य क्या है,इसके क्या फायदे है, ब्रम्हचर्य का पालन कैसे करे वगैरह प्रश्नों के जवाब मिलेंगे|
Samaj se prapat Brahmcharya (Purvardh): समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पूर्वार्ध)
by Dada Bhagwanप्रत्येक मनुष्य में आत्मा को पहचानकर अपना आत्यंतिक कल्याण (मोक्ष प्राप्ति) करने की शक्ति होती है| लेकिन, इस मार्ग में विषय सब से बड़ा बाधक कारण बन सकता है| सिर्फ प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष ही विषय आकर्षण के पीछे रहे विज्ञान को समझाकर उसमें से निकलने में हमारी सहायता कर सकते हैं| प्रस्तुत पुस्तक में पूज्य दादाश्री ने विपरीत लिंग के प्रति होते आकर्षण के इफेक्ट और कॉज़ का वर्णन किया हैं | उन्होंने यह बताया है कि विषय–विकार किस प्रकार से जोखमी हैं - वे मन और शरीर पर किस तरह विपरित असर डालते हैं और कर्म बंधन करवाते हैं| प्रस्तुत पुस्तक के खंड-१ में मूल रूप से आकर्षण- विकर्षण के सिद्धांत का वर्णन किया गया है और साथ ही यह आत्मानुभव में किस प्रकार से बाधक है और ब्रम्हचर्य के माहात्मय के प्रति समर्पित है| प्रस्तुत पुस्तक खंड- २ में ब्रम्हचर्य पालन करनेवाले निश्चयी के लिए सत्संग संकलित हुआ है | ज्ञानीपुरुष के श्रीमुख से ब्रम्हचर्य का परिणाम जानने के बाद उसके प्रति आफरीन हुए साधक में उस तरफ कदम बढ़ाने की हिम्मत आती है। ज्ञानी के संयोग से, सत्संग व सानिध्य प्राप्त करके, मन-वचन-काया से अखंड ब्रम्हचर्य में रहने का दृढ़- निश्चयी बनता है| ब्रम्हचर्य पथ पर प्रयाण करने हेतु और विषय के वट-वृक्ष को जड़-मूल से उखाड़कर निर्मूल करने हेतु इस मार्ग में बिछे हुए पत्थरों से लेकर पहाड़ जैसे विघ्नों के सामने, डगमगाते हुए निश्चय से लेकर ब्रम्हचर्य व्रत से च्युत होने के बावजूद ज्ञानीपुरुष उसे जागृति की सर्वोत्कृत श्रेणियाँ पार करवाकर निर्ग्रंथाता की प्राप्ति करवाए, उस हद तक की विज्ञान- दृष्टी खोल देते हैं और विकसित करते हैं| तो यह पुस्तक पढ़कर शुद्ध ब्रम्हचर्य किस तरह उपकारी है, ऐसी समझ प्राप्त करें|
Samaj se prapat Brahmcharya (Uttaradh): समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
by Dada Bhagwanहर एक मनुष्य में अपने आत्मा को पहचानकर मोक्ष प्राप्त करने की शक्ति है। लेकिन मोक्ष मार्ग में विषय सबसे बड़ा बाधक बन जाता है। सिर्फ प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष ही विषय आकर्षण के पीछे का विज्ञान समझाकर उसमें से बाहर निकलने में मदद कर सकते हैं। ज्ञानीपुरुष दादाश्री ने मोक्ष मार्ग में ब्रह्मचर्य की महत्वता और विवाहित लोग भी वह किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं, वह बताया है। विषय का वैराग्यमय स्वरुप, उसकी इस जन्म की और अगले जन्म की जोखिमदारियाँ बताई है| ब्रह्मचर्य से होनेवाले फायदे उसकी वैज्ञानिक एक्ज़ेक्टनेस के साथ बताए हैं। ब्रह्मचर्य की भूलरहित समझ, विषयबीज को निर्मूल कर के जड़-मूल से उखाड़ने का तरीका बताया है। खंड १ में पूज्य दादाश्री ने विवाहितों को बिना हक़ के विषय के सामने चेतावनी दी है वैसे ही उसकी जोखिमदारी और किस तरह से सूक्ष्मातिसूक्ष्म आकर्षण/ दृष्टिदोष भी हमें मोक्षमार्ग से भटका देंगे वह समझाया है। खंड २ में ज्ञानीपुरुष ने कैसा विज्ञान देखा! वह हमारे लिए खुल्ला किया है जगत के लोगों ने मीठी मान्यता से विषय में सुख का आनंद लिया, किस तरह उनकी दृष्टि विकसित करने से उनकी विषय संबंधित सभी उल्टी मान्याताएँ छूट जाएँ और महामुक्तदशा के मूल कारण रूप, ऐसे 'भाव ब्रह्मचर्य' का वास्तविक स्वरूप, विषय मुक्ति हेतु कर्तापन की सारी भ्रांति टूट जाए, और ज्ञानीपुरुष ने खुद जो देखा है, जाना है और अनुभव किया है, उस 'वैज्ञानिक अक्रम मार्ग' का ब्रह्मचर्य संबंधित अदभुत रहस्य खुल्ला किया है। ऐसे दुषमकाल में कि जहाँ समग्र जगत में वातावरण ही विषयाग्निवाला फैल गया है, ऐसे संयोगों में ब्रह्मचर्य संबंधित 'प्रकट विज्ञान' को स्पर्श करके निकली हुई 'ज्ञानीपुरुष' की अदभुत वाणी विषय-मोह में से छूटकर ब्रह्मचर्य की साधना में रहकर, सुज्ञ वाचक को अखंड शुद्ध ब्रह्मचर्य को समझ के साथ स्थिर करता है।
Chinta: चिंता
by Dada Bhagwanचिंता से काम बिगड़ते हैं, ऐसा कुदरत का नियम है। चिंता मुक्त होने से सभी काम सुधरते हैं। पढ़े-लिखे खाते-पीते घरों के लोगों को अधिक चिंता और तनाव हैं। तुलनात्मक रूप से, मज़दूरी करनेवाले, चिंता रहित होते हैं और चैन से सोते हैं। उनके ऊपरी (बॉस) को नींद की गोलियाँ लेनी पड़ती हैं। चिंता से लक्ष्मी भी चली जाती है। दादाश्री के जीवन का एक छोटा सा उदाहरण है। जब उन्हें व्यापार में घाटा हुआ, तो वे किस तरह चिंता मुक्त हुए। “एक समय, ज्ञान होने से पहले, हमें घाटा हुआ था। तब हमें पूरी रात नींद नहीं आई और चिंता होती रहती थी। तब भीतर से उत्तर मिला की इस घाटे की चिंता अभी कौन-कौन कर रहा होगा? मुझे लगा कि मेरे साझेदार तो शायद चिंता नहीं भी कर रहे होंगे। अकेला मैं ही चिंता कर रहा हूँ। और बीवी-बच्चे वगैरह भी हैं, वे तो कुछ जानते भी नहीं। अब वे कुछ जानते भी नहीं, तब भी उनका चलता है, तो मैं अकेला ही कम अक्लवाला हूँ, जो सारी चिंताएँ लेकर बैठा हूँ। फिर मुझे अक्ल आ गई, क्योंकि वे सभी साझेदार होकर भी चिंता नहीं करते, तो क्यों मैं अकेला ही चिंता किया करूँ?” चिंता क्या है? सोचना समस्या नहीं है। अपने विचारों में तन्मयाकर हुआ कि चिंता शुरू। ‘कर्ता’ कौन हैं, यह समझ में आ जाए तभी चिंता जाएगी।
Daan: दान
by Dada Bhagwanदान का अर्थ होता है किसीको कुछ देना| यह दान पैसों के रूप में हो सकता है, खाने के रूप में या सिर्फ किसी को खुश करने हेतु हो सकता है| दान देने से हमें खुशी मिलती है क्योंकि हमें लगता है कि हमने कुछ अच्छा काम किया है| दान करने से बहुत सारे फायदे होते है| जिसका विस्तारित वर्णन दादाश्री ने अपनी किताब ‘दान’ में किया है|इस किताब में दादाजी हमें यह भी बताते है कि किसे दान दे,क्या दान करना चाहिए, दान कितने प्रकार के होते है,दान करने के क्या फायदे है इत्यादि| दान करने से हम सिर्फ सामने वाले की मदद नहीं कर रहे पर खुद भी बहुत सारी खुशियाँ पाते है|दान का महत्व हमारे जीवन में क्या है, यह अधिक जानने के लिए, यह किताब ज़रूर पढ़े|
Hua So Nyay: हुआ सो न्याय
by Dada Bhagwanकुदरत के न्याय को यदि इस तरह समझोगे की “हुआ सो न्याय” तो आप इस संसार से मुक्त हो जाओगे। लोग जीवन में न्याय और मुक्ति एक साथ ढूँढते हैं। यहाँ पूर्ण विरोधाभास की स्थिति है। ये दोनों आपको एक साथ मिल ही नहीं सकते। प्रश्नों का अंत आने पर ही मुक्ति की शुरूआत होती है। अक्रम विज्ञान में सभी प्रश्नों का अंत आ जाता है, इसलिए यह बहुत ही सरल मार्ग है। दादाश्री की यह अनमोल खोज है की कुदरत कभी अन्यायी हुई ही नहीं है। जगत् न्याय स्वरूप ही है। जो हुआ सो न्याय ही है। कुदरत कोई व्यक्ति या भगवान नहीं है कि उस पर किसी का जोर चल सके। कुदरत यानि साईन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एवीडेन्स। कितने सारे संयोग इकट्ठे हों, तब कार्य होता है। दादाश्री के इस संकलन में, हुआ सो न्याय का विज्ञान प्रस्तुत किया गया है। इस सूत्र का जितना उपयोग जीवन में होगा, उतनी ही शांति बढेगी।
Jagat Karta Kaun?: जगत कर्ता कौन?
by Dada Bhagwanअनादी कल से जगत की वास्तविकता जानने की मनुष्य की लालसा है मगर वह सही जान नहीं पाया है| मुख्यत: वास्तविकता में मैं कौन हूँ, इस जगत को चलाने वाला कौन है तथा इस जगत का रचयिता कौन है, यह जानना है| प्रस्तुत संकलन में सच्चा कर्ता कौन है, यह रहस्य खुल्ला किया गया है| आमतौर पर अच्छा हुआ तो ‘मैंने किया” मान लेता है और बुरा हुआ तो दूसरे पर आक्षेप देता है कि ‘इसने बिगाड़ दिया|’ नहीं तो ‘मेरी ग्रह दशा बिगड़ गयी है’बोलेगा या तो ‘भगवान् ने किया’ ऐसा भी आक्षेप दे देता है| यह सब रोंग मान्यताएं हैं| भगवांन क्या पक्षपात करने वाला है कि आपका नुकसान करे? यह दुनिया किसने बनाई? अगर बनाने वाला होता तो उसको किसने बनाया? फिर उसको भी किसने बनाया? याने उसका अंत ही नहीं है| और दूसरा यह भी प्रश्न पैदा होता है कि दुनिया उसको बनानी ही थी, तो फिर ऐसी कैसी दुनिया बनाई कि जिसमे सभी दुखी हैं? किसी को भी सुख नहीं है? उसकी मज़ा और अपनी सजा, यह कैसा न्याय?! इस काल में करता सम्बन्धी का सिद्धांत पहली बार विश्व को यथार्थ स्वरुप में परम पूज्य दादा भगवान् ने दिया है और वह यह है कि इस दुनिया में कोई स्वतंत्र कर्ता नहीं है| इस दुनिया को रचने वाला या चलाने वाला कोई भी नहीं है| यह जगत चलता है, वह साइंटिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेंस से चलता है| जिसको परम पूज्य दादाश्री ‘व्यवस्थित शक्ति’ कहते हैं| जगत में कोई भी स्वतंत्र करता नहीं है, मगर, सब नैमितिक कर्ता हैं, सभी निमित हैं| गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था कि, "हे! अर्जुन! तू इस युद्ध में निमित मात्र है, तू युद्ध का कर्ता नहीं है| प्रस्तुत पुस्तिका में करता का रहस्य परम पूज्य दादाश्री की सादी, सरल भाषा में दिल में उतर जाए, इस तरह से समझाया गया है|
Karma Ka Siddhant: कर्म का सिद्धांत
by Dada Bhagwan'मैंने किया' बोला कि कर्मबंध हो जाता है। ये 'मैंने किया' इसमें इगोइज़्म(अहंकार) है और इगोइज़्म से कर्म बंधा जाता है। जिधर इगोइज़्म ही नहीं, मैंने किया ही नहीं है, वहाँ कर्म नहीं होता है ।
Karma Ka Vignan: कर्म का विज्ञान
by Dada Bhagwanजब भी हमारे साथ कुछ भी अच्छा या बुरा होता है तो हम हमेशा यही कहते हैं कि – यह सब हमारे कर्मो का ही नतीजा है| पर क्या हम जानते है कि कर्म क्या है और कर्म बंधन कैसा होता है? दादाश्री कहते है कि हमारा सारा जीवन हमारे ही पिछले कर्मो का नतीजा है| जो कुछ भी हमारे साथ अच्छा या बुरा हो रहा हैं, इसके ज़िम्मेदार हम खुद ही है| इस जीवन के कर्मो के बीज तो हमारे पिछले जन्मो में ही पड़ गए थे और अभी हम जो कुछ भी कर रहे है वह सब अगले जन्मों में रूपक में आएगा| लोग अक्सर यही सोचते है कि अच्छे कर्म और बुरे कर्म क्या होते है और किस प्रकार हम कर्म बंधन से मुक्त हो सकते है? दादाजी इसका जवाब देते हुए कहते है कि जिस काम से किसी का भला हो उसे अच्छे कर्म कहते है और जिससे किसी का नुक्सान हो, तो, उसे बुरे कर्म कहते है| कर्म बंधन से मुक्त होने का सबसे आसान और सरल उपाय यही है कि हम नए कर्मो के बीज ना डाले और अभी जो कुछ भी हो रहा है उसको समता से और समभाव से पूरा करे| ऐसा करने से नए कर्मो के बीज नहीं पड़ेंगे और हम इस जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो पाएँगे| कर्म का विज्ञान और उसे चलाने वाली व्यवस्थित शक्ति के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने, ‘कर्म का विज्ञान’, यह किताब ज़रूर पढ़े और अपने जीवन को सुखमय बनाये|
Krodh: क्रोध
by Dada Bhagwanहमें क्रोध क्यों आता है? क्रोध आने के कुछ कारण यह है - जब कोई भी कार्य हमारी इच्छानुसार नहीं होता या हमें यह लगे कि सामनेवाला व्यक्ति हमारी बात नहीं समझ रहा या फिर किसी बात पर किसी के साथ मनमुटाव हो तब| लेकिन क्रोध आने का कोई भी निश्चित कारण नहीं होता| कई बार हमारी समझ से हमें यह लगता है कि, हम जो भी सोच रहे है या जो कुछ भी कर रहे है वह सब सही ही है| पर, उस वक्त यदि कोई दूसरा व्यक्ति आकार हमें गलत साबित करे तो हम अपना आपा खो बैठते है और उसपर अत्यंत क्रोधित हो जाते है| क्रोध करने से ना सिर्फ सामनेवाला व्यक्ति दुखी होता है पर हमें भी उतना ही दुःख होता है| कई किस्सों में यह देखा गया है कि जिससे हम सबसे अधिक प्यार करते है, उसपर ही सबसे ज्यादा गुस्सा भी करते हैं| इस तरह बिना सोचा समझे गुस्सा करने से कई बार हमारे संबंधो में भी काफी तनाव पैदा हो जाता है जिसका फल अच्छा नहीं होता| किस प्रकार हम अपने क्रोध पर काबू पा सकते है या किसी और क्रोधित व्यक्ति के साथ कैसा बर्ताव करे ताकि हमारे औरों से प्रेमपूर्वक सम्बन्ध बने रहे, इन प्रश्नों का हल पाने के लिए आगे पढ़े|
Mai Kaun Hu: मैं कौन हूँ?
by Dada Bhagwanकेवल जीवन जी लेना ही जीवन नहीं है। जीवन जीने का कोई ध्येय, कोई लक्ष्य भी तो होगा। जीवन में कोई ऊँचा लक्ष्य प्राप्त करने का ध्येय होना चाहिए। जीवन का असली लक्ष्य ‘मैं कौन हूँ’, इस सवाल का जवाब प्राप्त करना है। पिछले अनंत जन्मों का यह अनुत्तरित प्रश्न है। ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री ने मूल प्रश्न “मैं कौन हूँ?” का सहजता से हल बता दिया है। मैं कौन हूँ? मैं कौन नहीं हूँ? खुद कौन है? मेरा क्या है? मेरा क्या नहीं है? बंधन क्या है? मोक्ष क्या है? क्या इस जगत् में भगवान हैं? इस जगत् का ‘कर्ता’ कौन है? भगवान ‘कर्ता’ हैं या नहीं? भगवन का सच्चा स्वरूप क्या है? ‘कर्ता’ का सच्चा स्वरूप क्या है? जगत् कौन चलाता है? माया का स्वरूप क्या है? जो हम देखते और जानते हैं, वह भ्रांति है या सत्य है? क्या व्यावहारिक ज्ञान आपको मुक्त कर सकता है? इस संकलन में दादाश्री ने इन सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर दिए हैं।
Manav Dharma: मानव धर्म
by Dada Bhagwanमनुष्य जीवन का ध्येय क्या है? इंसान पैदा होता है तबसे ही संसार चक्र में फँसकर लोगो के कहे अनुसार करता है| स्कूल-कॉलेज की पढाई करता है, नौकरी या धंधा करता है, शादी करके बच्चे पैदा करता है, और बूढ़े होने पर मर जाता है| तो क्या यही हमारे जीवन का मूल उद्शेय है? परम पूज्य दादाभगवान, मनुष्य जन्म को ४ गतियों का जंक्शन बताते है जहाँसे, देवगति, जानवरगति या नर्कगति में जाने का रास्ता खुला होता है|जिस प्रकार के बीज डाले हो और जिन कारणों का सेवन किया हो, उस गति में आगे जाना पड़ता है| तो, इन फेरो से आखिर हमें मुक्ति कब मिलेगी? दादाजी बताते है कि, मानवता या ‘मानवधर्म’ की सबसे बड़ी परिभाषा ही यह है कि, अगर कोई तुम्हें दुःख दे और तुम्हें अच्छा ना लगे, तो दूसरों के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए| अगले जन्म में अगर नर्कगति या जानवर गति में नहीं जाना हो तो, मानवधर्म का हमेशा ही पालन करना चाहिए| इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने, यह किताब पढ़े और अपना मनुष्यजीवन सार्थक बनाइये|
Mrutyu Samay Pahle Aur Pashchat: मृत्यु समय, पहले और पश्चात
by Dada Bhagwanमृत्यु- हमारे जीवन का अविभाज्य अंग है| हर व्यक्ति को अपने जीवन में किसी ना किसी रूप में मृत्यु का सामना करना पड़ता है| किसी अपने परिवारजन या पड़ौसी की मृत्यु देखकर वह भयभीत हो जाता है और मृत्यु से संबंधीत तरह तरह की कल्पनाएँ करने लगता है| कई तरह के प्रश्न जैसे – मृत्यु के बाद इंसान कहा जाता है, क्या उसका पुनर्जनम संभव है, वह किस रूप में पुनः जन्म लेता है इत्यादि उसे भ्रमित कर देते है और मृत्यु का खौफ पैदा करते है| परम पूज्य दादा भगवान को हुए आत्मज्ञान द्वारा उन्होंने इस रहस्य से संबंधित अनेक प्रश्नों का जवाब दिया है| जन्म और मृत्यु का चक्र, पुनर्जनम, जन्म-मृत्यु से मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति आदि प्रश्नों के सटीक जवाब हमें उनकी पुस्तक ‘मृत्यु के रहस्य’ में मिलती है| दादाश्री हमें मृत्यु से संबंधित सारी गलत मान्यताओं की सही समझ देकर हमे यह बताते है कि आखिर हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है और हम किस प्रकार इस चक्कर से हमेशा के लिए मुक्त हो सकते है|
Paap Punya: पाप पुण्य
by Dada Bhagwanपाप या पुण्य, जीवन में किये गए किसी भी कार्य का फल माना जाता है| इस पुस्तक में दादाश्री हमें बहुत ही गहराई से इन दोनों का मतलब समझाते हुए यह बताते है कि, कोई भी काम जिससे दूसरों को आनंद मिले और उनका भला हो, उससे पुण्य बंधता है और जिससे किसीको तकलीफ हो उससे पाप बंधता है| हमारे देश में बच्चा छोटा होता है तभीसे माता-पिता उसे पाप और पुण्य का भेद समझाने में जुट जाते है पर क्या वह खुद पाप-पुण्य से संबंधित सवालों के जवाब जानते है? आमतौर पर खड़े होने वाले प्रश्न जैसे- पाप और पुण्य का बंधन कैसे होता है? इसका फल क्या होता है?क्या इसमें से कभी भी मुक्ति मिल सकती है?यह मोक्ष के लिए हमें किस प्रकार बाधारूप हो सकता है? पाप बांधने से कैसे बचे और पुण्य किस तरह से बांधे?|||इत्यादि सवालों के जवाब हमें इस पुस्तक में मिलते है| इसके अलावा, दादाजी हमें प्रतिक्रमण द्वारा पाप बंधनों में से मुक्त होने का रास्ता भी बताते है| अगर हम अपनी भूलो का प्रतिक्रमण या पश्चाताप करते है, तो हम इससे छूट सकते है| अपनी पाप –पुण्य से संबंधित गलत मान्यताओं को दूर करने और आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति करने हेतु, इस किताब को ज़रूर पढ़े और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़े|
Paiso Ka Vyvahaar (Sanxipt): पैसों का व्यवहार (संक्षिप्त)
by Dada Bhagwanएक सुखी और अच्छा जीवन बिताने हेतु, पैसा हमारा जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है| पर क्या कभी आपने यह सोचा है कि, ‘ क्यों किसी के पास बहुत सारा पैसा होता है और किसी के पास बिल्कुल नहीं?’ परम पूज्य दादाजी का हमेशा से यही मानना था कि, पैसों के व्यवहार में नैतिकता बहुत ही ज़रूरी है| अपने अनुभवों के आधार पर और ज्ञान की मदद से वह पैसों के आवन-जावन, नफा-नुक्सान, लेन-देन आदि के बारे में बहुत ही विगतवार जानते थे| वह कहते थे कि मन की शान्ति और समाधान के लिए किसी भी व्यापार में सच्चाई और ईमानदारी के साथ नैतिक मूल्यों का होना भी बहुत ही ज़रूरी है| जिसके बिना भले ही आपके पास बुहत सारा धन हो पर अंदर से सदैव चिंता और व्याकुलता ही रहेगी| अपनी वाणी के द्वारा दादाजी ने हमें पैसों के मामले में खड़े होने वाले संघर्षों से कैसे मुक्त हो और किस प्रकार बिना किसी मनमुटाव के और ईमानदारी से, अपना पैसों से संबंधित व्यवहार पूरा करे इसका वर्णन किया है जो हम इस किताब में पढ़ सकते है|
Pati Patni ka Divya Vyavhar (Sanxipt): पति पत्नी का दिव्य व्यवहार (संक्षिप्त)
by Dada Bhagwanपति और पत्नी यह दोनों एक ही गाड़ी के दो पहिये है जिसका साथ में चलना बहुत ही अनिवार्य है| हर घर में पति-पत्नी के बीच किसी ना किसी बात पर संघर्ष और मनमुटाव चलते ही रहता है जिसके कारण घर का वातावरण भी तनावपूर्ण हो जाता है| इसका प्रभाव घर में रहने वाले अन्य सदस्यों पर भी पड़ता है और खासकर बच्चे भी इससे बहुत ही प्रभावीत होते है| पूज्य दादा भगवान खुद भी विवाहित थे पर अपने सम्पूर्ण आयुष्यकाल में उनका अपनी पत्नी के साथ कभी भी किसी भी बात को लेकर विवाद खड़ा नहीं हुआ| अपनी किताब, ‘पति पत्नी का दिव्य व्यवहार’ में दादाजी हमें अपने विवाह जीवन को आदर्श किस तरह बनाये, इससे संबंधित बहुत सारी चाबियाँ देते है|अपने अनुभवों और ज्ञान के साथ, लोगो द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब में दादाजी ने बहुत सारी अच्छी बाते कही है, जिसका पालन करने से पति और पत्नी एक दूसरे के साथ सामजस्य के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार कर सकेंगे|
Pratikraman (Sanxipt): प्रतिक्रमण (संक्षिप्त)
by Dada Bhagwanइंसान हर कदम पर कोई ना कोई गलती करता है जिससे दूसरों को बहुत दुःख होता है| जिसे मोक्ष प्राप्त करना है, उसे यह सभी राग-द्वेष के हिसाबो से मुक्त होना होगा| इसका सबसे आसान तरीका है अपने द्वारा किये गए पापों का प्रायश्चित करना या माफ़ी माँगना| ऐसा करने के लिए तीर्थंकरों ने हमें बहुत ही शक्तिशाली हथियार दिया है जिसका नाम है ‘प्रतिक्रमण’|प्रतिक्रमण मतलब, हमारे द्वारा किये गए अतिक्रमण को धो डालना| ज्ञानी पुरुष दादा भगवान ने हमें आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान की चाबी दी है जिससे हम अतिक्रमण से मुक्त हो सकते है| आलोचना का अर्थ होता है- अपनी गलती का स्वीकार करना, प्रतिक्रमण मतलब उस गलती के लिए माफ़ी माँगना और प्रत्याख्यान करने का अर्थ है- दृढ़ निश्चय करना कि ऐसी गलती दोबारा ना हो| इस पुस्तक में हमें हमारे द्वारा किये गए हर प्रकार के अतिक्रमण से कैसे मुक्त हो सके इसका रास्ता मिलता है|