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Aptavani Shreni 1: आप्तवाणी श्रेणी १

by Dada Bhagwan

यह संसार किसने बनाया? क्या यह संसार आपके लिए परेशानी का कारण है? क्या आपको आश्चर्य होता है कि यहाँ सबकुछ कैसे होता है? कैसे हम अनगिनित जन्मों में भटक रहे हैं। यह सब करनेवाला कौन है? धर्म क्या है? मोक्ष क्या है? आध्यात्मिकता और धर्म में क्या फर्क है? शुद्ध आत्मा क्या है? मन, शरीर और वाणी के क्या कार्य हैं? लौकिक रिश्तों को कैसे निभाएँ? भाग्य और कर्म का अंतर कैसे समझें? अहंकार क्या है? क्रोध-लोभ-मोह, क्या वे अहंकार के कारण हैं? जिन्हें मोक्ष पाने की इच्छा है या जो मोक्ष चाहते हैं, उनकी ज़िंदगी में ऐसे अनेक प्रश्न व समस्याएँ होगीं। ‘स्वयं’का ज्ञान या ‘मैं कौन हूँ’यह सब का अंतिम लक्ष्य है। ‘मैं कौन हूँ’के ज्ञान बगैर मोक्ष नहीं मिल सकता। यह ज्ञान केवल ज्ञानीपुरुष से ही प्राप्त हो सकता है। इस पुस्तक में ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री द्वारा दिए गए बहुत सी समस्याओं के उत्तर संकलित हैं। इस दिव्य पुस्तक का ज्ञान उन लोगों के लिए हैं जिनकी वैज्ञानिक सोच है, जिन्हें आत्मिक शांति चाहिए और जो संसार की परेशानियों से मुक्त होना चाहते हैं।

Aptavani Shreni 2: आप्तवाणी श्रेणी २

by Dada Bhagwan

जिसे छूटना ही है उसे कोई बाँध नहीं सकता और जिसे बंधना ही है उसे कोई छुड़वा नहीं सकता! - परम पूज्य दादाश्री| यह ज्ञान ग्रंथ या धर्म ग्रंथ नहीं है, लेकिन विज्ञान ग्रंथ है| इसमें आंतरिक विज्ञान का, वीतराग विज्ञान का ज्ञानार्क जो कि परम पूज्य दादाश्री के श्रीमुख से प्रकट हुआ है, उसे प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है| यह ज्ञानग्रंथ तत्व चिंतकों, विचारकों तथा सच्चे जिज्ञासुओं के लिए अत्यंत उपयोगी रहेगा| भाषा सादी और एकदम सरल होने के कारण सामान्य जन को भी वह पूरा-पूरा फल दे सकेगी| सुज्ञ पाठक गहराई से इस महान ग्रंथ का चिंतन मनन करेंगे तो अवश्य समकित प्राप्त करेंगे|

Aptavani Shreni 3: आप्तवाणी श्रेणी ३

by Dada Bhagwan

ज़िंदगी में लोगों के बहुत से लक्ष्य और उद्देश होते हैं, लेकिन वे सबसे बुनियादी सवाल का जवाब नहीं दे पाते कि ‘मैं कौन हूँ’। बल्कि हममें से अधिकतर लोग यह नहीं जानते। अनंत समय से लोग संसार के भौतिक साधनों के पीछे भागते रहे हैं। सिर्फ ज्ञानीपुरुष ही आत्म साक्षात्कार करवा सकते हैं और आपको संसार के भौतिक बंधनों से मुक्ति दिलवा सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने आत्मा के गुणों और अन्य अनेकों विषयों जैसे ‘स्वयं’के ज्ञान, दर्शन तथा शक्तियों के बारे में बताया है। सुख, स्वसत्ता, परसत्ता, स्वपरिणाम, परपरिणाम, व्यवहार आत्मा, निश्चय आत्मा तथा अनेक विषयों के बारे मे भी बताया है। पुस्तक के दुसरे भाग में परम पूज्य दादाश्री ने ‘क्लेश रहित जीवन कैसे जीएँ’इसकी चाबी दी है तथा यह भी बताया है कि सही सोच से परिवार में बिना दुखी हुए कैसे व्यव्हार करें जैसे-बच्चों से व्यव्हार, दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारना, दूसरों के साथ तालमेल बिठाना, सांसारिक संबंधों को कैसे निभाएँ, परिवार, मेहमान, बड़ों के साथ, अलग-अलग व्यक्तित्ववाले सदस्यों से कैसे व्यवहार करें, रिश्तों को सामान्य कैसे करें इत्यादि... इस पुस्तक का अध्ययन करके जीवन में उतारने से जीवन हमेशा के लिए शांति और आनंदमय हो जाएगा।

Aptavani Shreni 4: आप्तवाणी श्रेणी ४

by Dada Bhagwan

जो आप स्वयं हैं उसमे इतनी क्षमता है कि वह पूरी दुनिया को प्रकाशित कर सके। स्वयं में अनंत ऊर्जा है, फिर भी हम बहुत दुःख, कष्ट, मजबूरी और असुरक्षा का अनुभव करते हैं। यह बात कितनी विरोधाभासी हैं। हमें अपने स्वरूप की शक्ति और सत्ता का सही ज्ञान नहीं है। जब हम स्वयं जागृत हो जाते हैं तो हमें सारी सृष्टि के मालिक होने का एहसास होता है। आम तौर पर जिसे जागना कहा जाता है, ज्ञानी उसे निद्रा कहते हैं। सारा विश्व भावनिद्रा में डूबा हुआ है। जागृति या समझ की कमी की वजह से हम यह नहीं जान पाते कि इस दुनिया में और दूसरी दुनिया में हमारे लिए क्या लाभदायक है और क्या हानिकारक है। इस समय भावनिद्रा के कारण, अहंकार, मान, क्रोध, छलकपट, लोभ तथा अलग-अलग मान्यताओं और चिंता के कारण सब लोग मतभेद महसूस करते हैं। जिसे यह जागरूकता है कि ‘मैं जागृत हूँ’ और मन के विचार ‘स्व’से बिल्कुल अलग है, जिसे आत्मा के विज्ञान की अनुभूति हो गई, वह संसार में रहकर ही जीवन मुक्त हो जाता है। इस पुस्तक में ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री ने यह ज्ञान दिया है कि हम स्वयं के प्रति कैसे जागृत रहें, ध्यान, प्रारब्ध और स्वतंत्र इच्छा, घृणा तिरस्कार, अनादर स्वयं का सांसारिक धर्म, जीवनमुक्ति का लक्ष्य तथा कर्म का विज्ञान आदि के बारे में ज्ञान दिया है। जो लोग स्वयं का सही अर्थ जानने के उत्सुक हैं उन्हें यह पढ़ने से मुक्ति के पंथ पर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी और यह पढ़ाई उनकी जागृति बढ़ाएगी।

Aptavani Shreni 5: आप्तवाणी श्रेणी ५

by Dada Bhagwan

व्यवस्थित शक्ति के द्वारा हमारे जीवन का समस्त सांसारिक व्यवहार डिस्चार्ज हो रहा है। हमारी पाँचों इन्द्रियाँ कर्म के अधीन हैं। कर्मों के बंधन का कारण क्या है? यह धारणा की कि ‘मैं चंदुलाल हूँ’ वह कर्म बंधन का मूल कारण है। सिर्फ सच (तथ्य) जानने की आवश्यकता है। यह एक विज्ञान है। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने पाँच ज्ञान इन्द्रियों तथा उनके कार्यों की प्रणाली के बारे में बताया है। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, यह सब इन्द्रियों के अलग-अलग कार्य हैं। फिर अपना कार्य करने में कौन असफल रहा? ‘स्व’ रहा। ‘स्व’ का कार्य है जानना, देखना और हमेंशा आनंदमय स्थिति में रहना। हर इन्सान ज़िंदगी के बहाव के साथ आगे बह रहा है। यहाँ कोई भी कर्ता नहीं है। अगर कोई स्वतंत्र कर्ता होता तो वह हमेंशा बंधन में ही रहता। जो नैमित्तिक कर्ता है वह कभी भी बंधन में नहीं रहता। संसार प्राकृतिक परिस्थितियों के प्रभाव से उत्त्पन्न परिणाम पर ही चलता है। ऐसी परिस्थिति में ‘मैं कर्ता हूँ’ की गलत धारणा की उत्पत्ति होती है। इस कर्तापन की गलत धारणा की वजह से अगले जन्म के बीज बोए जाते हैं। इस संकलन में परम पूज्य दादाश्री ने कर्म के विज्ञान, कर्तापन, पाँच इन्द्रियों, अहंकार, मनुष्यों का स्वभाव, ज्ञानियों के प्रति विनय, पापों का प्रतिक्रमण, प्रायश्चित इत्यादि विषयों के बारे में बताया है। यह समझ साधकों को स्वयं के बारे में व संसार में दूसरों से कैसे शांतिपूर्वक व्यवहार करें, इस बारे में मदद करती है।

Aptavani Shreni 6: आप्तवाणी श्रेणी ६

by Dada Bhagwan

हममें से ज्यादातर लोग हमेशा एक समस्याका सामना कर रहें हैं | जिसमे एक तरफ व्यव्हारमें हरेक क्षण बाहरी प्रश्न खड़े होते हैं, और दूसरी तरफ अंदरूनी संघर्षमे भी फँसे हुए रहते हैं और अकेले हाथों से उनको हल करना होता है | हम जानते है की कभी - कभी हमारी वाणी के प्रश्न खड़े किये होते है, या हमको किसीने कुछ कहा इसलिए हम दुखी होते है, या तो हम दूसरेका बूरा सोचते है या फिर हमें लगता है हमारे साथ अन्याय हुआ है अथवा हम खुद ही अंदरसे शांतिका अनुभव नहीं कर सकते | सांसारिक जीवन व्यवहार वह समस्याओं का संग्रह्स्थान है | एक समस्या का हल आता है की पीछे और समस्या खड़ी हो जाती है | क्यूँ हमें ऐसी समस्याओंका सामना करना पड़ता है? क्यूँ हम अनंत जन्मोंसे भटकते रहते है? ‘अटकण’ की वजह से! हकीकतमे खुदके पास आत्माका परम आनंद था ही, परंतु खुद दैहिक सुखोंकी अटकणों में डूब गए थे | यह अटकण ज्ञानीपुरुषकी कृपा से और उसके बाद अपने पराक्रमसे टूट सकती है | एक बार आपको आत्मज्ञान होगा, तो जगत शांत हो जायेगा | यह जीवन दूसरों की व्यर्थ चर्चा मे व्यय करने के लिए नहीं है | यह जगत जैसा है वैसा है | उसमे आपको आपकी ‘खुद’की सेफ साइड ढूँढ निकालनी है | तो चलो, हम डूब की लगायें और जाने की यह अक्रम विज्ञान कैसे बंधन, कर्म, वाणी, प्रतिक्रमण, कुदरत के नियम ईत्यादि का विज्ञान समझने में उपयोगी है जिससे सर्व सांसारिक समस्याओं के तूफानो का डटकर सामना करना आसान हो जाए |

Aptavani Shreni 7: आप्तवाणी श्रेणी ७

by Dada Bhagwan

प्रस्तुत ग्रंथ आप्तवाणी-7 में परम पूज्य दादाश्री की जीवन-व्यवहार से संबंधित बातचीत और प्रश्नोतरी द्वारा की गई वाणी का संकलन किया गया है। ज्ञानीपुरुष जीवन के सामान्य से सामान्य घटनाओं को भी असाधारण दृष्टि और समझ से देखते हैं। ऐसी घटनाएँ सुज्ञ वाचक को जीवन-व्यवहार में एक नई ही दृष्टि और नई ही विचारश्रेणी देती है। अलग-अलग विषयों पर यहाँ वर्णन किया गया है उनमें से कई हमें विचलित कर दे ऐसे हैं, जैसे कि जंजाली जीवन में जागृति, लक्ष्मी का चिंतवन, उलझनों में किस तरह शांतिपूर्वक रह सकें, टालो कंटाला, चिंता से मुक्ति, भय पर कैसे विजय पाएँ, कढ़ापा-अजंपा, शिकायतें, जीवन की अंतिम पलों में क्या होता है, क्रोध कषाय, अति गंभीर बीमारी में किस तरह समता रखें, पाप-पुण्य की परिभाषा, व्यवसाय-ऑफिस में रोज़मर्रा की समस्याओं का और इस तरह की जीवन में आती हुई कई परेशानियों का किस तरह हल करें। प्रस्तुत ग्रंथ में प्रकट ज्ञानीपुरुष की हृदयस्पर्शी वाणी का संकलन किया गया है कि जिसमें ऐसी कुछ घटनाओं को विगतवार प्रकाशित किया गया है, ताकि प्रत्येक सुज्ञ वाचक को खुद के जीवन-व्यवहार में एक नई ही दृष्टि, नये ही दर्शन से(समझ से) वैसे ही विचारक दशा की नई ही कड़ियों को खुली होने में मददरूप होगी, ऐसा अंतर-आशय है।

Aptavani Shreni 8: आप्तवाणी श्रेणी ८

by Dada Bhagwan

इस पुस्तक में स्वयं के मूल गुणों के बारे में तथा अन्य शाश्वत तत्वों के बारे में बताया गया है। यह ज्ञान ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री जो की अक्रम विज्ञान के प्रणेता हैं, उनके द्वारा दिया गया है। ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जो लोगों के मन में अक्सर उठते हैं, जैसे- ‘मैं कौन हूँ?’ मुझे स्वयं के बारे में ज्ञान कैसे मिले या मैं स्वयं को कैसे जानूं? जन्म-मरण क्या है? आत्मा का वैज्ञानिक स्वरूप क्या है? इस प्रकार के अनेक सवालों के जवाब परम पूज्य दादाश्री ने इस किताब में पूर्ण संतुष्टता के साथ दिए हैं। सारे आध्यात्मिक शास्त्रों, उपदेशों और क्रियाओं का सार एक ही है –स्वयं को जानना (स्वयं के बारे में जागरूकता)। जो हम स्वयं हैं वह पूर्ण शुद्ध है, लेकिन ‘मैं कौन हूँ’ की धारणा गलत है। इस पुस्तक में यह गलत धारणा वर्तमान ज्ञानीपुरुष द्वारा दूर की गई है। पुस्तक अनेक भागों में विभाजित है जिसमें प्रथम भाग में दादाजी ने- ‘स्वयं’, उसके गुण तथा दूसरे भाग में स्वयं को जानने का रास्ता दिखाया है। इस पुस्तक में उन लोगों का मार्गदर्शन किया गया है जो स्वयं को जानना चाहते हैं और मुक्त होना चाहते हैं।

Aptavani Shreni 9: आप्तवाणी श्रेणी ९

by Dada Bhagwan

ज्ञानीपुरुष बताते हैं कि काम-क्रोध-लोभ-मोह-अहंकार और छलकपट ही मोक्ष की राह के कांटे हैं और बंधन के कारण हैं। जब इन समस्त विकारों पर पूर्ण विजय प्राप्त की जाएगी तभी मुक्ति मिलेगी। समस्त विकार, क्रोध-अहंकार-लोभ और कपट में ही समाए हुए हैं परंतु ये विकार व्यावहारिक जीवन में कैसे प्रत्यक्ष होते हैं और सामने आते हैं? यह केवल तभी समझ में आएगा जब कोई ज्ञानीपुरुष इसे समझाएँगे। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने अत्यंत सुंदर, हृदयग्राही तरीके से मोक्ष मार्ग में आनेवाली बाधाएँ तथा उनके निवारण के बारे में बताया है जिससे आध्यात्मिक साधक इन सबसे ऊपर उठकर मुक्ति प्राप्त कर सकें।

Aptavani Shreni-14 (Bhaag-3): आप्तवाणी-श्रेणी-१४ (भाग -३)

by Dada Bhagwan

आप्तवाणी -14 भाग -3 में प्रकाशित प्रश्नोतरी सत्संग में, परम पूज्य दादाश्री ने आत्मज्ञान से लेकर केवलज्ञान दशा तक पहुँचने के लिए सारी समझ खुली कर दी हैं। खंड-1 में आत्मा के स्वरूप रियली, रिलेटिवली, संसार व्यवहार में हर एक जगह पर, कर्म बाँधते समय, कर्मफल भुगतते समय और खुद मूल रूप से कौन है, उसी तरह अस्तित्व के स्वरूप जो ज्ञानी पुरुष के श्रीमुख से निकले हैं, उनका विस्तारपूर्वक स्पष्टीकरण प्राप्त होता है। प्रतिष्ठित आत्मा, व्यवहार आत्मा, पावर चेतन, मिश्रचेतन, निश्चेतन चेतन और मिकेनिकल चेतन की ज्ञानी की दृष्टि में जो यथार्थ समझ है, वह शब्दों के माध्यम से परम पूज्य दादाश्री की वाणी द्वारा प्राप्त होती है। खंड-2 में ज्ञान के स्वरूप की समझ, स्वरूप के अज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक के सभी प्रकार उसके अलावा ज्ञान-दर्शन के विविध प्रकारो की विस्तृत समझ प्राप्त होती है। अज्ञान में कुमति, कुश्रुत, कुअवधि एवम ज्ञान में श्रुतज्ञान, मतिज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान और केवलज्ञान, इस तरह पाँच भाग और दर्शन में चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, अवधि दर्शन और केवल दर्शन वगैरह का आध्यात्मिक स्पष्टीकरण प्राप्त होता है।

Aptavani Shreni-1: आप्तवाणी श्रेणी –१

by Dada Bhagwan

यह संसार किसने बनाया? क्या यह संसार आपके लिए परेशानी का कारण है? क्या आपको आश्चर्य होता है कि यहाँ सबकुछ कैसे होता है? कैसे हम अनगिनित जन्मों में भटक रहे हैं। यह सब करनेवाला कौन है? धर्म क्या है? मोक्ष क्या है? आध्यात्मिकता और धर्म में क्या फर्क है? शुद्ध आत्मा क्या है? मन, शरीर और वाणी के क्या कार्य हैं? लौकिक रिश्तों को कैसे निभाएँ? भाग्य और कर्म का अंतर कैसे समझें? अहंकार क्या है? क्रोध-लोभ-मोह, क्या वे अहंकार के कारण हैं? जिन्हें मोक्ष पाने की इच्छा है या जो मोक्ष चाहते हैं, उनकी ज़िंदगी में ऐसे अनेक प्रश्न व समस्याएँ होगीं। ‘स्वयं’ का ज्ञान या ‘मैं कौन हूँ’ यह सब का अंतिम लक्ष्य है। ‘मैं कौन हूँ’ के ज्ञान बगैर मोक्ष नहीं मिल सकता। यह ज्ञान केवल ज्ञानीपुरुष से ही प्राप्त हो सकता है। इस पुस्तक में ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री द्वारा दिए गए बहुत सी समस्याओं के उत्तर संकलित हैं। इस दिव्य पुस्तक का ज्ञान उन लोगों के लिए हैं जिनकी वैज्ञानिक सोच है, जिन्हें आत्मिक शांति चाहिए और जो संसार की परेशानियों से मुक्त होना चाहते हैं।

Aptavani Shreni-2: आप्तवाणी-श्रेणी-२

by Dada Bhagwan

जिसे छूटना ही है उसे कोई बाँध नहीं सकता और जिसे बंधना ही है उसे कोई छुड़वा नहीं सकता! - परम पूज्य दादाश्री| यह ज्ञान ग्रंथ या धर्म ग्रंथ नहीं है, लेकिन विज्ञान ग्रंथ है| इसमें आंतरिक विज्ञान का, वीतराग विज्ञान का ज्ञानार्क जो कि परम पूज्य दादाश्री के श्रीमुख से प्रकट हुआ है, उसे प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है| यह ज्ञानग्रंथ तत्व चिंतकों, विचारकों तथा सच्चे जिज्ञासुओं के लिए अत्यंत उपयोगी रहेगा| भाषा सादी और एकदम सरल होने के कारण सामान्य जन को भी वह पूरा-पूरा फल दे सकेगी| सुज्ञ पाठक गहराई से इस महान ग्रंथ का चिंतन मनन करेंगे तो अवश्य समकित प्राप्त करेंगे|

Aptavani Shreni-3: आप्तवाणी श्रेणी-३

by Dada Bhagwan

ज़िंदगी में लोगों के बहुत से लक्ष्य और उद्देश होते हैं, लेकिन वे सबसे बुनियादी सवाल का जवाब नहीं दे पाते कि ‘मैं कौन हूँ’। बल्कि हममें से अधिकतर लोग यह नहीं जानते। अनंत समय से लोग संसार के भौतिक साधनों के पीछे भागते रहे हैं। सिर्फ ज्ञानीपुरुष ही आत्म साक्षात्कार करवा सकते हैं और आपको संसार के भौतिक बंधनों से मुक्ति दिलवा सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने आत्मा के गुणों और अन्य अनेकों विषयों जैसे ‘स्वयं’ के ज्ञान, दर्शन तथा शक्तियों के बारे में बताया है। सुख, स्वसत्ता, परसत्ता, स्वपरिणाम, परपरिणाम, व्यवहार आत्मा, निश्चय आत्मा तथा अनेक विषयों के बारे मे भी बताया है। पुस्तक के दुसरे भाग में परम पूज्य दादाश्री ने ‘क्लेश रहित जीवन कैसे जीएँ’ इसकी चाबी दी है तथा यह भी बताया है कि सही सोच से परिवार में बिना दुखी हुए कैसे व्यव्हार करें जैसे-बच्चों से व्यव्हार, दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारना, दूसरों के साथ तालमेल बिठाना, सांसारिक संबंधों को कैसे निभाएँ, परिवार, मेहमान, बड़ों के साथ, अलग-अलग व्यक्तित्ववाले सदस्यों से कैसे व्यवहार करें, रिश्तों को सामान्य कैसे करें इत्यादि... इस पुस्तक का अध्ययन करके जीवन में उतारने से जीवन हमेशा के लिए शांति और आनंदमय हो जाएगा।

Aptavani Shreni-4: आप्तवाणी श्रेणी -४

by Dada Bhagwan

तुम्ही जीवनात होणाऱ्या क्लेशांपासून थकून गेला आहात का? आणि चकित आहात की हे नवीन क्लेश कुठून बरे उत्पन्न होतात? क्लेश रहित जीवनासाठी तुम्हाला फक्त पक्का निश्चय करायचा आहे की लोकांसोबत असलेला व्यवहार तुम्ही समताभावे पूर्ण कराल आणि तेही त्यात यश मिळेल की नाही याची चिंता केल्याशिवाय. मग एक दिवस तुम्हाला तुमच्या जीवनात नक्कीच शांती लाभेल. जर बायको-मुलांसोबत अधिक गुंतागुंतीचे कर्म असतील तर त्यांचा निकाल करण्यात जरा जास्त वेळ लागतो. जवळच्या माणसांसोबत असलेला गुंता हळूहळू संपुष्टात येतो. चिकट कर्मांचा निकाल करतेवेळी तुम्हाला अतिशय जागृत राहावे लागेल. जर तुम्ही निष्काळजीपणा आणि आळस दाखवलात तर हा सर्व गुंता सोडवण्यात तुम्हाला अपयश मिळेल. जर कोणी तुम्हाला कटू शब्द बोलला आणि त्यावर तुमचीही जर कटू वाणी निघाली तरीही तुमच्या बाहेरील व्यवहार इतका महत्वपूर्ण नाही कारण तुमची घृणा समाप्त झाली आहे आणि तुम्ही समभावे निकाल करण्याचा दृढ निश्चय केलेला आहे. च्च्बदला घेण्याच्या सर्व भावनांपासून मुक्त होण्यासाठी तुम्हाला परम पूज्य दादाश्रींकडे येऊन ज्ञान घेतले पाहिजे. मी तुम्हाला मुक्त होण्याचा रस्ता दाखवेल. जीवनात थकलेली माणसे मृत्यूला का कवटाळतात? याचे कारण ते जीवनातील ताण-तनावाचा सामना करु शकत नाही. इतक्या अधिक ताण-तनावात तुम्ही किती दिवस जगू शकाल? किड्या-मुंग्याप्रमाणे आजचा मनुष्य निरंतर त्रासलेला आहे. मनुष्य जीवन मिळाल्यानंतरही कोणी दु:खी का असावे? संपूर्ण जग दु:खातच आहे आणि जो दु:खात नाही तो काल्पनिक सुखात हरवलेला आहे. या दोन टोकांमध्ये जीवत झुलत आहे. आत्मज्ञान प्राप्त झाल्यानंतर तुम्ही सर्व कल्पना आणि दु:खांपासून मुक्त व्हाल.ज्ज् दादाश्रींच्या या पुस्तकात क्लेश रहित जीवन जगण्याच्या चाव्या आणि योग्य समज देण्यात आली आहे.

Aptavani Shreni-5: आप्तवाणी श्रेणी -५

by Dada Bhagwan

व्यवस्थित शक्ति के द्वारा हमारे जीवन का समस्त सांसारिक व्यवहार डिस्चार्ज हो रहा है। हमारी पाँचों इन्द्रियाँ कर्म के अधीन हैं। कर्मों के बंधन का कारण क्या है? यह धारणा की कि ‘मैं चंदुलाल हूँ’ वह कर्म बंधन का मूल कारण है। सिर्फ सच (तथ्य) जानने की आवश्यकता है। यह एक विज्ञान है। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने पाँच ज्ञान इन्द्रियों तथा उनके कार्यों की प्रणाली के बारे में बताया है। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, यह सब इन्द्रियों के अलग-अलग कार्य हैं। फिर अपना कार्य करने में कौन असफल रहा? ‘स्व’ रहा। ‘स्व’ का कार्य है जानना, देखना और हमेंशा आनंदमय स्थिति में रहना। हर इन्सान ज़िंदगी के बहाव के साथ आगे बह रहा है। यहाँ कोई भी कर्ता नहीं है। अगर कोई स्वतंत्र कर्ता होता तो वह हमेंशा बंधन में ही रहता। जो नैमित्तिक कर्ता है वह कभी भी बंधन में नहीं रहता। संसार प्राकृतिक परिस्थितियों के प्रभाव से उत्त्पन्न परिणाम पर ही चलता है। ऐसी परिस्थिति में ‘मैं कर्ता हूँ’ की गलत धारणा की उत्पत्ति होती है। इस कर्तापन की गलत धारणा की वजह से अगले जन्म के बीज बोए जाते हैं। इस संकलन में परम पूज्य दादाश्री ने कर्म के विज्ञान, कर्तापन, पाँच इन्द्रियों, अहंकार, मनुष्यों का स्वभाव, ज्ञानियों के प्रति विनय, पापों का प्रतिक्रमण, प्रायश्चित इत्यादि विषयों के बारे में बताया है। यह समझ साधकों को स्वयं के बारे में व संसार में दूसरों से कैसे शांतिपूर्वक व्यवहार करें, इस बारे में मदद करती है।

Aptavani Shreni-6: आप्तवाणी श्रेणी -६

by Dada Bhagwan

एकीकडे संसार व्यवहारात पदोपदी येणाऱ्या समस्या आणि दुसरीकडे आंतरिक संघर्षांशी झुंजणाऱ्या या काळाच्या मनुष्याला अंतरशांती कशी काय लाभेल? यातून सुटका कशी होईल? आपण पाहतो की कित्येकदा आपल्या बोलल्यामुळे समोरच्याला दुःख होत असते, तर कित्येकदा कोणी आपल्याला काही बोलले त्यामुळे आपल्याला दुःख होते, कधी वाटते आपल्याबरोबर अन्याय झाला आहे, तर कधी मनात शंका वाटत राहते, इतरांना दोषी पाहिले जाते... अशा परिस्थितीत समाधान कसे मिळवायचे? जीवन व्यवहार हे समस्यांचे संग्रहस्थानच आहे. एका समस्येचे निवारण झाले की दुसरी समस्या आ वासून उभीच असते. आपल्याला सतत अशा समस्यांचा सामना का करावा लागतो? स्वतःच्या कोणत्या चुकीमुळे आपण अनंतकाळापासून भटकत राहिलो आहोत? वास्तवात स्वतःजवळ आत्म्याचा परमानंद तर होताच पण स्वतः दैहिक सुखातच रममाण होता. ज्ञानी पुरुषांच्या कृपेमुळे आणि त्यानंतर स्व-पराक्रमाने ही चूक सुधारता येते. एकदा आत्मज्ञान झाले की अनंत समाधीसुख अनुभवास येते! तर चला, या अक्रम विज्ञानाद्वारे कर्म, बंधन, प्रतिक्रमण, वाणी, निसर्गाचे नियम... इत्यादीचे विज्ञान समजून घेऊया आणि त्या समजूतीने सांसारिक समस्यांना अगदी सहजपणे सोडवून परमानंद प्राप्तीकडे वळूया.

Aptavani-12 (U): आप्तवाणी श्रेणी-१२(उत्तरार्ध)

by Dada Bhagwan

ज्ञान (आत्मज्ञान) मिलने के बाद महात्माओं को निरंतर पाँच आज्ञा में रहने के अलावा अन्य कुछ भी नहीं करना है। ये पाँच आज्ञाएँ ज्ञानविधि (आत्म-ज्ञान प्राप्त करने की विधि) द्वारा ज्ञान प्राप्त किए हुए महात्माओं के लिए ही हैं। जो पाँच आज्ञा में एक्ज़ेक्ट रहते हैं, वे भगवान महावीर जैसी दशा प्राप्त कर सकते हैं! इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री के पाँच आज्ञा के अर्थ पर सत्संग हैं, पाँच आज्ञा का बेहद और संपूर्ण महत्व, व्यावहारिक कार्यों के डिस्चार्ज के समय आज्ञा में कैसे रहें, रियल और रिलटिव संयोगों के साथ कैसे बरतें, फाइलों का समभाव से निकाल कैसे करें, भरे हुए माल और कर्मों के चार्ज और डिस्चार्ज की समझ और मोक्ष के तप की आवश्यकता और अन्य बहुत सी बाबतों का समावेश हुआ है। इस प्रकार की अमूल्य समझ, हमें मोक्षमार्ग में प्रगति के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।

Aptavani-12 - (Uttarardh): આપ્તવાણી શ્રેણી - ૧૨ (ઉત્તરાર્ધ)

by Dada Bhagwan

જ્ઞાન (આત્મજ્ઞાન) મળ્યા પછી મહાત્માઓને નિરંતર પાંચ આજ્ઞામાં રહેવા સિવાય બીજું કંઈ જ કરવાનું રહેતું નથી. આ પાંચ આજ્ઞા જ્ઞાનવિધિ (આત્મજ્ઞાન પ્રાપ્તિની વિધિ) દ્વારા જ્ઞાન પામેલા મહાત્માઓ માટે જ છે. પાંચ આજ્ઞામાં એક્ઝેક્ટ રહે, તે ભગવાન મહાવીર જેવી દશાને પામે! આ પુસ્તક માં પરમ પૂજ્ય દાદાશ્રીનો પાંચ આજ્ઞાનાં અર્થ પરનો સત્સંગ, પાંચ આજ્ઞાનું અપાર અને સંપૂર્ણ મહત્વ, વ્યવહારિક કાર્યોનાં ડીસ્ચાર્જ વખતે કેવીરીતે આજ્ઞામાં રહેવું, રીયલ અને રીલેટીવ સંજોગોની સાથે કેવીરીતે વર્તવું, ફાઈલોનો સમભાવે નિકાલ કેવીરીતે કરવો, ભરેલા માલ અને કર્મોના ચાર્જ અને ડીસ્ચાર્જની સમજણ અને મોક્ષના તપ ની આવશ્યકતા અને બીજી ઘણી બાબતોનો સમાવેશ થયેલો છે.. આ પ્રકારની અમૂલ્ય સમજણ, આપણને મોક્ષમાર્ગ પર પ્રગતિ માટે ખૂબ જ ઉપયોગી નીવડશે.

Aptavani-14 Part-1

by Dada Bhagwan

The book presented here reveals the properties of the Self and identifies the problems because of which we are unable to realize the Self. The book is divided into two subparts: Part 1 This part discusses which are the six eternal elements of the universe, the cause of rise of visheshbhav (“I”) and egoism. The soul remains in its original form but a separate identity (“I”) gets evolved due to pressure of scientific circumstantial evidences and self ignorance. “I“ is the first level of separate identity and “ego” is the second level. Wrong beliefs such as “I am Chandu (reader should use his own name)”, “I am the doer” arise and consequently anger, pride, lust and greed develops out of such wrong beliefs. ”I am Chandu” this belief is the cause of all sorrow .Once this belief goes away there is no sorrow.

Aptavani-14 Part-2

by Dada Bhagwan

This Aptavani describes the properties and nature of the Soul as experienced by Param Pujya Dadashri. How He was able to use that quality Himself theoretically as well as practically, He experienced it and gave us a wonderful insight into using it and entering the Soul. And in the chapter of Siddha Stuti, we get things like how to use that virtue to keep equanimity in worldly situations and what is the reality against the worldly beliefs? Also, how can these qualities be used in different states of beliefs? How does an enlightened person experience such qualities realistically? And beyond that, how would the Tirthankaras be experiencing in the highest state? All these things said by Param Pujya Dadashri are included here.

Aptavani-14 Part-2: આપ્તવાણી શ્રેણી-૧૪ ભાગ-૨

by Dada Bhagwan

પ્રસ્તુત પુસ્તકમાં આત્માનાં ગુણોધર્મોને અગોપિત કરવામાં આવ્યા છે અને એ કારણોની પણ ઓળખાણ પાડવામાં આવી છે કે જેનાં કારણે આપણે આત્માનુભવ કરવામાં અસમર્થ છીએ. પુસ્તક બે ભાગમાં વિભાજીત કરવામાં આવ્યું છે. આ બીજા ભાગમાં છ અવિનાશી તત્વોનું (આત્મા, જડ, ગતિસહાયક, સ્થિતિસહાયક, કાળ અને આકાશ) વિગતવાર વર્ણન અને કઈરીતે આ બ્રહ્માંડ, આ તત્વોની ભાગીદારીથી બનેલું છે અને જડતત્વનો સ્વભાવ, આત્માનાં ગુણધર્મ અને પર્યાયની ઊંડી સમજણ પાડવામાં આવી છે. “હું ચંદુલાલ છું” એ સંસારનું અને “હું શુધ્ધાત્મા છું” એ મુકિતનું કારણ છે.

Aptavani-14 Part-3: આપ્તવાણી શ્રેણી-૧૪ ભાગ-૩

by Dada Bhagwan

આપ્તવાણી ૧૪, ભાગ ૩ માં પ્રકાશિત પ્રશ્નોત્તરી સત્સંગમાં પરમ પૂજ્ય દાદાશ્રી આત્મજ્ઞાનથી લઈને કેવળજ્ઞાન દશા સુધી પહોંચવા માટેની બધી સમજણ ખુલ્લી કરે છે. ખંડ ૧ માં આત્માના સ્વરૂપો રીઅલી, રીલેટીવલી, સંસાર વ્યવહારમાં દરેક રીતે, કર્મ બાંધતી વખતે, કર્મફળ ભોગવતી વખતે અને પોતે મૂળ સ્વરૂપે કોણ છે, એમ અસ્તિત્વના સ્વરૂપો જે જ્ઞાની પુરુષના શ્રીમુખે બોલાયા છે, એના વિગતવાર ફોડ પ્રાપ્ત થાય છે. પ્રતિષ્ઠિત આત્મા, વ્યવહાર આત્મા, પાવર ચેતન, મિશ્રચેતન, નિશ્ચેતન ચેતન અને મિકેનીકલ ચેતનની જ્ઞાનીની દ્રષ્ટિમાં જે યથાર્થ સમજણ છે તે શબ્દોના માધ્યમથી પરમ પૂજ્ય દાદાશ્રીની વાણી દ્વારા પ્રાપ્ત થાય છે. ખંડ ૨ માં જ્ઞાન સ્વરૂપની સમજણ, સ્વરૂપના અજ્ઞાનથી લઈને કેવળજ્ઞાન સુધીના પ્રકારો તેમજ જ્ઞાન-દર્શનના વિવિધ પ્રકારોની વિસ્તૃત સમજણ પ્રાપ્ત થાય છે. અજ્ઞાનમાં કુમતિ, કુશ્રુત, કુઅવધિ તથા જ્ઞાનમાં શ્રુતજ્ઞાન, મતિજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન, મન:પર્યવ જ્ઞાન અને કેવળ જ્ઞાન એમ પાંચ વિભાગ તેમજ દર્શનમાં ચક્ષુ દર્શન, અચક્ષુ દર્શન, અવધિ દર્શન અને કેવળ દર્શન વગેરેના આધ્યાત્મિક ફોડ પ્રાપ્ત થાય છે.

Aptavani-14 Part-4: આપ્તવાણી શ્રેણી-૧૪ ભાગ-૪

by Dada Bhagwan

આ આપ્તવાણીમાં પરમ પૂજ્ય દાદાશ્રીએ અનુભવેલા આત્માના ગુણધર્મો અને સ્વભાવનું વર્ણન છે. થિયરેટિકલ અને એટલું જ પ્રેક્ટિકલ રીતે, એ ગુણને ઉપયોગમાં પોતે કેવી રીતે લઈ શક્યા, એમને એ વર્ત્યું છે અને આપણને પણ એને ઉપયોગમાં લઈ આત્મામાં આવી જવાની અદભુત સમજ આપી શક્યા. અને એ ગુણ ઉપયોગમાં લઈ સંસારી પરિસ્થિતિઓમાં વીતરાગતા કેવી રીતે રાખી શકાય, તેવી વાતો સિદ્ધ સ્તુતિના ચેપ્ટરમાં આપણને પ્રાપ્ત થાય છે તથા લૌકિક માન્યતાઓ સામે વાસ્તવિકતા શું છે ? તેમ જ માન્યતાઓની વિવિધ દશાઓમાં આ ગુણ-સ્વભાવ કેવી રીતે ઉપયોગમાં લેવાય ? જ્ઞાની પુરુષને આવા ગુણ-સ્વભાવ કેવી રીતે યથાર્થપણે વર્તે છે ? અને એથી આગળ તીર્થંકર સાહેબોને સર્વોચ્ચ દશામાં કેવું વર્તતું હશે ? એ બધી વાતો દાદા શ્રીમુખે નીકળી છે, તે સર્વ અત્રે સમાવિષ્ટ થઈ છે.

Aptavani-14 Part-5: આપ્તવાણી શ્રેણી-૧૪ ભાગ-૫

by Dada Bhagwan

આ આપ્તવાણીમાં આત્માના સ્વરૂપ વિશે સૈદ્ધાંતિક વાતોને સંકલન કરવાનો પ્રયાસ થયો છે. જેમાં કેવળજ્ઞાન સ્વરૂપ, ચૈતન્યઘન સ્વરૂપ, વિજ્ઞાન સ્વરૂપ, સચ્ચિદાનંદ સ્વરૂપ, પ્રકાશ સ્વરૂપ, અવ્યાબાધ સ્વરૂપ, ટંકોત્કીર્ણ, અરીસા જેવો, અનંત પ્રદેશી, અરૂપી-અમૂર્ત, સૂક્ષ્મતમ, સિદ્ધ ભગવાન, મોક્ષ આદિ અનેક ફોડ પાડ્યા છે.પરમ પૂજ્ય દાદાશ્રીએ સત્સંગમાં પ્રદાન કરેલી આવી વિવિધ સમજને યથાયોગ્ય સંકલન કરી આ પુસ્તકમાં પ્રકાશન કરવામાં આવેલ છે. જે મૂળ અવર્ણનીય,અવક્તવ્ય,નિઃશબ્દ એવા આત્મસ્વરૂપની સમાજ પામવા સહાયરૂપ બનશે.

Aptavani-7 (In Marathi): आप्तवाणी श्रेणी - ७

by Dada Bhagwan

प्रस्तुत पुस्तक, ज्याचे नाव "आप्तवाणी ७" आहे, हे दादाश्रींच्या दैनंदिन जीवनाबद्दलच्या चर्चेचे आणि प्रश्नांच्या उत्तरांचे संकलन आहे. ज्ञानी पुरूष (ज्ञानी) जीवनातील साध्या घटनांना मोठ्या दृष्टी आणि समजुतीने पाहतात. अशा घटनांमुळे ज्ञानी वाचकाला त्यांच्या दैनंदिन जीवनात एक नवीन दृष्टी आणि पूर्णपणे नवीन विचारप्रक्रिया मिळेल. येथे चर्चा केलेले विषय आहेत - जीवनात जागृती (सतर्कता), पैशाचे व्यवस्थापन, संघर्षमय परिस्थितीत शांत कसे राहायचे, कंटाळवाण्यावर मात कशी करावी, चिंता/भीतीपासून मुक्तता, आयुष्याच्या शेवटच्या क्षणी काय घडते - मृत्यू जवळ येणे, क्रोध-चकमकी, सर्वात वाईट आजारांमध्ये शांत कसे राहायचे, पुण्य आणि पाप-कर्माची कारणे (पाप-पुण्य) आणि कार्यालय/व्यवसायात येणाऱ्या नियमित समस्यांना तोंड देणे. या पुस्तकात ज्ञानी पुरूषांच्या हृदयस्पर्शी भाषणाचे सादरीकरण केले आहे; ज्यामध्ये यापैकी काही घटना तपशीलवार प्रकाशित केल्या आहेत.

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