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Aptavani Shreni 14 (Bhaag-2): आप्तवाणी श्रेणी १४ (भाग-२)

by Dada Bhagwan

इस आप्तवाणी में परम पूज्य दादाश्री द्वारा अनुभव किए गए आत्मा के गुणधर्मो और उसके स्वभाव का वर्णन है। थ्योरिटिकल तो है पर प्रेक्टिकली वे खुद उन गुणों का उपयोग कैसे कर पाए, उसका वर्णन है। उनके वर्तन में वह आ चुका था और हमें भी इनका उपयोग करके आत्मा में आ जाने की अद्भुत समझ दे पाए। और उन गुणों का उपयोग करके सांसारिक परिस्थितियों में वीतरागता कैसे रखी जा सकती है, वे बातें सिद्ध स्तुति के चेप्टर में हमें प्राप्त होती हैं । लौकिक मान्यताओं के सामने वास्तविक्ता क्या है और मान्यताओं की विविध दशाओं में ऐसे गुणों व स्वभाव का उपयोग कैसे किया जा सकता है, ज्ञानी पुरुष में ऐसे गुण व स्वभाव यथार्थ रूप से कैसे बरतते हैं और उससे भी आगे तीर्थंकर भगवंतो को सर्वोतम दशा में कैसा रहता होगा, ये सारी बातें जो दादाश्री के श्रीमुख से निकली हैं, वे सब यहाँ समाविष्ट हुई हैं।

Aptavani Shreni-14 (Bhaag-3): आप्तवाणी-श्रेणी-१४ (भाग -३)

by Dada Bhagwan

आप्तवाणी -14 भाग -3 में प्रकाशित प्रश्नोतरी सत्संग में, परम पूज्य दादाश्री ने आत्मज्ञान से लेकर केवलज्ञान दशा तक पहुँचने के लिए सारी समझ खुली कर दी हैं। खंड-1 में आत्मा के स्वरूप रियली, रिलेटिवली, संसार व्यवहार में हर एक जगह पर, कर्म बाँधते समय, कर्मफल भुगतते समय और खुद मूल रूप से कौन है, उसी तरह अस्तित्व के स्वरूप जो ज्ञानी पुरुष के श्रीमुख से निकले हैं, उनका विस्तारपूर्वक स्पष्टीकरण प्राप्त होता है। प्रतिष्ठित आत्मा, व्यवहार आत्मा, पावर चेतन, मिश्रचेतन, निश्चेतन चेतन और मिकेनिकल चेतन की ज्ञानी की दृष्टि में जो यथार्थ समझ है, वह शब्दों के माध्यम से परम पूज्य दादाश्री की वाणी द्वारा प्राप्त होती है। खंड-2 में ज्ञान के स्वरूप की समझ, स्वरूप के अज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक के सभी प्रकार उसके अलावा ज्ञान-दर्शन के विविध प्रकारो की विस्तृत समझ प्राप्त होती है। अज्ञान में कुमति, कुश्रुत, कुअवधि एवम ज्ञान में श्रुतज्ञान, मतिज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान और केवलज्ञान, इस तरह पाँच भाग और दर्शन में चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, अवधि दर्शन और केवल दर्शन वगैरह का आध्यात्मिक स्पष्टीकरण प्राप्त होता है।

Aptavani Shreni 2: आप्तवाणी श्रेणी २

by Dada Bhagwan

जिसे छूटना ही है उसे कोई बाँध नहीं सकता और जिसे बंधना ही है उसे कोई छुड़वा नहीं सकता! - परम पूज्य दादाश्री| यह ज्ञान ग्रंथ या धर्म ग्रंथ नहीं है, लेकिन विज्ञान ग्रंथ है| इसमें आंतरिक विज्ञान का, वीतराग विज्ञान का ज्ञानार्क जो कि परम पूज्य दादाश्री के श्रीमुख से प्रकट हुआ है, उसे प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है| यह ज्ञानग्रंथ तत्व चिंतकों, विचारकों तथा सच्चे जिज्ञासुओं के लिए अत्यंत उपयोगी रहेगा| भाषा सादी और एकदम सरल होने के कारण सामान्य जन को भी वह पूरा-पूरा फल दे सकेगी| सुज्ञ पाठक गहराई से इस महान ग्रंथ का चिंतन मनन करेंगे तो अवश्य समकित प्राप्त करेंगे|

Aptavani Shreni 3: आप्तवाणी श्रेणी ३

by Dada Bhagwan

ज़िंदगी में लोगों के बहुत से लक्ष्य और उद्देश होते हैं, लेकिन वे सबसे बुनियादी सवाल का जवाब नहीं दे पाते कि ‘मैं कौन हूँ’। बल्कि हममें से अधिकतर लोग यह नहीं जानते। अनंत समय से लोग संसार के भौतिक साधनों के पीछे भागते रहे हैं। सिर्फ ज्ञानीपुरुष ही आत्म साक्षात्कार करवा सकते हैं और आपको संसार के भौतिक बंधनों से मुक्ति दिलवा सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने आत्मा के गुणों और अन्य अनेकों विषयों जैसे ‘स्वयं’के ज्ञान, दर्शन तथा शक्तियों के बारे में बताया है। सुख, स्वसत्ता, परसत्ता, स्वपरिणाम, परपरिणाम, व्यवहार आत्मा, निश्चय आत्मा तथा अनेक विषयों के बारे मे भी बताया है। पुस्तक के दुसरे भाग में परम पूज्य दादाश्री ने ‘क्लेश रहित जीवन कैसे जीएँ’इसकी चाबी दी है तथा यह भी बताया है कि सही सोच से परिवार में बिना दुखी हुए कैसे व्यव्हार करें जैसे-बच्चों से व्यव्हार, दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारना, दूसरों के साथ तालमेल बिठाना, सांसारिक संबंधों को कैसे निभाएँ, परिवार, मेहमान, बड़ों के साथ, अलग-अलग व्यक्तित्ववाले सदस्यों से कैसे व्यवहार करें, रिश्तों को सामान्य कैसे करें इत्यादि... इस पुस्तक का अध्ययन करके जीवन में उतारने से जीवन हमेशा के लिए शांति और आनंदमय हो जाएगा।

Aptavani Shreni 4: आप्तवाणी श्रेणी ४

by Dada Bhagwan

जो आप स्वयं हैं उसमे इतनी क्षमता है कि वह पूरी दुनिया को प्रकाशित कर सके। स्वयं में अनंत ऊर्जा है, फिर भी हम बहुत दुःख, कष्ट, मजबूरी और असुरक्षा का अनुभव करते हैं। यह बात कितनी विरोधाभासी हैं। हमें अपने स्वरूप की शक्ति और सत्ता का सही ज्ञान नहीं है। जब हम स्वयं जागृत हो जाते हैं तो हमें सारी सृष्टि के मालिक होने का एहसास होता है। आम तौर पर जिसे जागना कहा जाता है, ज्ञानी उसे निद्रा कहते हैं। सारा विश्व भावनिद्रा में डूबा हुआ है। जागृति या समझ की कमी की वजह से हम यह नहीं जान पाते कि इस दुनिया में और दूसरी दुनिया में हमारे लिए क्या लाभदायक है और क्या हानिकारक है। इस समय भावनिद्रा के कारण, अहंकार, मान, क्रोध, छलकपट, लोभ तथा अलग-अलग मान्यताओं और चिंता के कारण सब लोग मतभेद महसूस करते हैं। जिसे यह जागरूकता है कि ‘मैं जागृत हूँ’ और मन के विचार ‘स्व’से बिल्कुल अलग है, जिसे आत्मा के विज्ञान की अनुभूति हो गई, वह संसार में रहकर ही जीवन मुक्त हो जाता है। इस पुस्तक में ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री ने यह ज्ञान दिया है कि हम स्वयं के प्रति कैसे जागृत रहें, ध्यान, प्रारब्ध और स्वतंत्र इच्छा, घृणा तिरस्कार, अनादर स्वयं का सांसारिक धर्म, जीवनमुक्ति का लक्ष्य तथा कर्म का विज्ञान आदि के बारे में ज्ञान दिया है। जो लोग स्वयं का सही अर्थ जानने के उत्सुक हैं उन्हें यह पढ़ने से मुक्ति के पंथ पर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी और यह पढ़ाई उनकी जागृति बढ़ाएगी।

Aptavani Shreni 5: आप्तवाणी श्रेणी ५

by Dada Bhagwan

व्यवस्थित शक्ति के द्वारा हमारे जीवन का समस्त सांसारिक व्यवहार डिस्चार्ज हो रहा है। हमारी पाँचों इन्द्रियाँ कर्म के अधीन हैं। कर्मों के बंधन का कारण क्या है? यह धारणा की कि ‘मैं चंदुलाल हूँ’ वह कर्म बंधन का मूल कारण है। सिर्फ सच (तथ्य) जानने की आवश्यकता है। यह एक विज्ञान है। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने पाँच ज्ञान इन्द्रियों तथा उनके कार्यों की प्रणाली के बारे में बताया है। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, यह सब इन्द्रियों के अलग-अलग कार्य हैं। फिर अपना कार्य करने में कौन असफल रहा? ‘स्व’ रहा। ‘स्व’ का कार्य है जानना, देखना और हमेंशा आनंदमय स्थिति में रहना। हर इन्सान ज़िंदगी के बहाव के साथ आगे बह रहा है। यहाँ कोई भी कर्ता नहीं है। अगर कोई स्वतंत्र कर्ता होता तो वह हमेंशा बंधन में ही रहता। जो नैमित्तिक कर्ता है वह कभी भी बंधन में नहीं रहता। संसार प्राकृतिक परिस्थितियों के प्रभाव से उत्त्पन्न परिणाम पर ही चलता है। ऐसी परिस्थिति में ‘मैं कर्ता हूँ’ की गलत धारणा की उत्पत्ति होती है। इस कर्तापन की गलत धारणा की वजह से अगले जन्म के बीज बोए जाते हैं। इस संकलन में परम पूज्य दादाश्री ने कर्म के विज्ञान, कर्तापन, पाँच इन्द्रियों, अहंकार, मनुष्यों का स्वभाव, ज्ञानियों के प्रति विनय, पापों का प्रतिक्रमण, प्रायश्चित इत्यादि विषयों के बारे में बताया है। यह समझ साधकों को स्वयं के बारे में व संसार में दूसरों से कैसे शांतिपूर्वक व्यवहार करें, इस बारे में मदद करती है।

Aptavani Shreni 6: आप्तवाणी श्रेणी ६

by Dada Bhagwan

हममें से ज्यादातर लोग हमेशा एक समस्याका सामना कर रहें हैं | जिसमे एक तरफ व्यव्हारमें हरेक क्षण बाहरी प्रश्न खड़े होते हैं, और दूसरी तरफ अंदरूनी संघर्षमे भी फँसे हुए रहते हैं और अकेले हाथों से उनको हल करना होता है | हम जानते है की कभी - कभी हमारी वाणी के प्रश्न खड़े किये होते है, या हमको किसीने कुछ कहा इसलिए हम दुखी होते है, या तो हम दूसरेका बूरा सोचते है या फिर हमें लगता है हमारे साथ अन्याय हुआ है अथवा हम खुद ही अंदरसे शांतिका अनुभव नहीं कर सकते | सांसारिक जीवन व्यवहार वह समस्याओं का संग्रह्स्थान है | एक समस्या का हल आता है की पीछे और समस्या खड़ी हो जाती है | क्यूँ हमें ऐसी समस्याओंका सामना करना पड़ता है? क्यूँ हम अनंत जन्मोंसे भटकते रहते है? ‘अटकण’ की वजह से! हकीकतमे खुदके पास आत्माका परम आनंद था ही, परंतु खुद दैहिक सुखोंकी अटकणों में डूब गए थे | यह अटकण ज्ञानीपुरुषकी कृपा से और उसके बाद अपने पराक्रमसे टूट सकती है | एक बार आपको आत्मज्ञान होगा, तो जगत शांत हो जायेगा | यह जीवन दूसरों की व्यर्थ चर्चा मे व्यय करने के लिए नहीं है | यह जगत जैसा है वैसा है | उसमे आपको आपकी ‘खुद’की सेफ साइड ढूँढ निकालनी है | तो चलो, हम डूब की लगायें और जाने की यह अक्रम विज्ञान कैसे बंधन, कर्म, वाणी, प्रतिक्रमण, कुदरत के नियम ईत्यादि का विज्ञान समझने में उपयोगी है जिससे सर्व सांसारिक समस्याओं के तूफानो का डटकर सामना करना आसान हो जाए |

Aptavani Shreni 7: आप्तवाणी श्रेणी ७

by Dada Bhagwan

प्रस्तुत ग्रंथ आप्तवाणी-7 में परम पूज्य दादाश्री की जीवन-व्यवहार से संबंधित बातचीत और प्रश्नोतरी द्वारा की गई वाणी का संकलन किया गया है। ज्ञानीपुरुष जीवन के सामान्य से सामान्य घटनाओं को भी असाधारण दृष्टि और समझ से देखते हैं। ऐसी घटनाएँ सुज्ञ वाचक को जीवन-व्यवहार में एक नई ही दृष्टि और नई ही विचारश्रेणी देती है। अलग-अलग विषयों पर यहाँ वर्णन किया गया है उनमें से कई हमें विचलित कर दे ऐसे हैं, जैसे कि जंजाली जीवन में जागृति, लक्ष्मी का चिंतवन, उलझनों में किस तरह शांतिपूर्वक रह सकें, टालो कंटाला, चिंता से मुक्ति, भय पर कैसे विजय पाएँ, कढ़ापा-अजंपा, शिकायतें, जीवन की अंतिम पलों में क्या होता है, क्रोध कषाय, अति गंभीर बीमारी में किस तरह समता रखें, पाप-पुण्य की परिभाषा, व्यवसाय-ऑफिस में रोज़मर्रा की समस्याओं का और इस तरह की जीवन में आती हुई कई परेशानियों का किस तरह हल करें। प्रस्तुत ग्रंथ में प्रकट ज्ञानीपुरुष की हृदयस्पर्शी वाणी का संकलन किया गया है कि जिसमें ऐसी कुछ घटनाओं को विगतवार प्रकाशित किया गया है, ताकि प्रत्येक सुज्ञ वाचक को खुद के जीवन-व्यवहार में एक नई ही दृष्टि, नये ही दर्शन से(समझ से) वैसे ही विचारक दशा की नई ही कड़ियों को खुली होने में मददरूप होगी, ऐसा अंतर-आशय है।

Aptavani Shreni 8: आप्तवाणी श्रेणी ८

by Dada Bhagwan

इस पुस्तक में स्वयं के मूल गुणों के बारे में तथा अन्य शाश्वत तत्वों के बारे में बताया गया है। यह ज्ञान ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री जो की अक्रम विज्ञान के प्रणेता हैं, उनके द्वारा दिया गया है। ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जो लोगों के मन में अक्सर उठते हैं, जैसे- ‘मैं कौन हूँ?’ मुझे स्वयं के बारे में ज्ञान कैसे मिले या मैं स्वयं को कैसे जानूं? जन्म-मरण क्या है? आत्मा का वैज्ञानिक स्वरूप क्या है? इस प्रकार के अनेक सवालों के जवाब परम पूज्य दादाश्री ने इस किताब में पूर्ण संतुष्टता के साथ दिए हैं। सारे आध्यात्मिक शास्त्रों, उपदेशों और क्रियाओं का सार एक ही है –स्वयं को जानना (स्वयं के बारे में जागरूकता)। जो हम स्वयं हैं वह पूर्ण शुद्ध है, लेकिन ‘मैं कौन हूँ’ की धारणा गलत है। इस पुस्तक में यह गलत धारणा वर्तमान ज्ञानीपुरुष द्वारा दूर की गई है। पुस्तक अनेक भागों में विभाजित है जिसमें प्रथम भाग में दादाजी ने- ‘स्वयं’, उसके गुण तथा दूसरे भाग में स्वयं को जानने का रास्ता दिखाया है। इस पुस्तक में उन लोगों का मार्गदर्शन किया गया है जो स्वयं को जानना चाहते हैं और मुक्त होना चाहते हैं।

Aptavani Shreni 9: आप्तवाणी श्रेणी ९

by Dada Bhagwan

ज्ञानीपुरुष बताते हैं कि काम-क्रोध-लोभ-मोह-अहंकार और छलकपट ही मोक्ष की राह के कांटे हैं और बंधन के कारण हैं। जब इन समस्त विकारों पर पूर्ण विजय प्राप्त की जाएगी तभी मुक्ति मिलेगी। समस्त विकार, क्रोध-अहंकार-लोभ और कपट में ही समाए हुए हैं परंतु ये विकार व्यावहारिक जीवन में कैसे प्रत्यक्ष होते हैं और सामने आते हैं? यह केवल तभी समझ में आएगा जब कोई ज्ञानीपुरुष इसे समझाएँगे। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने अत्यंत सुंदर, हृदयग्राही तरीके से मोक्ष मार्ग में आनेवाली बाधाएँ तथा उनके निवारण के बारे में बताया है जिससे आध्यात्मिक साधक इन सबसे ऊपर उठकर मुक्ति प्राप्त कर सकें।

Atmabodh: आत्मबोध

by Dada Bhagwan

प्रस्तुत संकलन में प्रकट प्रत्यक्ष ज्ञानी के स्वमुख से प्रवाहित आत्मतत्व, और अन्य तत्वों सम्बन्धी वास्तविक दर्शन खुला होता है| आत्मा के अस्तित्व की आशंका से लेकर, आत्मा क्या होगा, कैसा होगा, क्या करता होगा, जन्म मरण क्या है, किसके जन्म मरण, कर्म क्या है, चार गतियाँ क्या है, उसकी प्राप्ति के रहस्य, मोक्ष क्या है, सिद्धगति क्या है, जैसे अनेकों प्रश्नों के समाधान यहाँ पर हैं| जीव क्या है? शिव क्या है? द्वैत, अद्वैत, ब्रह्म, परब्रह्म, आत्मा की सर्वव्यापकता, कण कण में भगवान्, वेद और विज्ञानं वगैरह अनेक वेदान्त के रहस्य यहाँ पर अनावृत हुए हैं| तमाम शास्त्रों का, साधकों का, साधनाओ का सार एक ही है कि खुद के आत्मा का भान करना, ज्ञान प्राप्त कर लेना है| ‘मूल आत्मा’, तो शुद्ध ही है मात्र ‘खुद’ को रोंग बिलीफ बैठ गई है, प्रकट ‘ज्ञानीपुरुष’ के पास यह मान्यता छूट जाती है| जो कोटि जन्मों तक नहीं हो पाता, वह ‘ज्ञानी’ के पास से प्राप्त हो सकता है| विश्व में कभी कभार आत्मज्ञानी पुरूष अवतरित होते हैं, तभी यह आध्यात्मिक रहस्य खुल्ला हो पाता है| संसार में जो भी ज्ञान है, वह भौतिक ज्ञान है| उससे आत्म साक्षात्कार कभी नहीं हो सकता| ज्ञानीपुरुष को आत्मा का अनुभव होने से आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति हो सकती है| प्रस्तुत संकलन में संपूज्य श्री दादाश्री ने खुद के ज्ञान में ‘जैसा है वैसा’ आत्मा का स्वरुप और जगत का स्वरुप देखा है, जाना है, अनुभव किया है, उस सम्बन्ध में उनके ही श्रीमुख से निकली हुई वाणी का यहाँ पर संकलन किया गया है, जो अध्यात्म मार्ग में पदापर्ण करनेवालों को आत्मसमुख होने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी|

Bhavna Se Sudhare Janmo Janam: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म

by Dada Bhagwan

९ कलमे, परम पूज्य दादा भगवान द्वारा दी गई अमूल्य भेट है| यह कलमे संसार के सभी शास्त्रों के ज्ञान को निचोडकर बनायीं हुई है जो भीतर से हमारे भावो में फेरबदल करती है और हमें एक आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती है| अक्सर लोग यह सोचते है कि, इस जीवन में उन्होंने किसीके साथ कुछ भी बुरा व्यवहार नहीं किया फिर भी क्यों उन्हें इतने सारे दुःख और तकलीफों का सामना करना पड़ता है| इसका जवाब देते हुए दादाजी बताते है कि, यह अभी का जो कुछ भी हो रहा है, वह तो सिर्फ परिणाम है, हमारे पिछले जन्मों में किये गए भावो का| और अभी हम जो भी नए भाव करेंगे उसका फल हमें आने वाले जन्मों में भुगतना रहेगा| यह ९ कलमे, हमें हमारे भीतर के भावो को बदलने में सहायरूप है जिससे हम अभी आनेवाली परेशानियों का सामना कर सके और अगले जन्मों के लिए कोई भी नयी परेशानियाँ खड़ी ना करे| हज़ारो लोगो को यह कलमे हर दिन बोलने से फायदा हुआ है| आप भी जान सकते है इस अभूतपूर्व विज्ञान को इस पुस्तक द्वारा|

Bhugate Uski Bhool: भुगते उसी की भूल

by Dada Bhagwan

जो दुःख भोगे तो उसकी भूल और सुख भोगे तो उसका इनाम। लेकिन भ्रांति का कानून निमित्त को पकड़ता है। भगवान का कानून, रीयल कानून, तो जिसकी भूल होगी, उसको पकड़ेगा। वह कानून एक्ज़ेक्ट है और उसमें कोई परीवर्तन कर सके, ऐसा है ही नहीं। ऐसा कोई कानून जगत् में नहीं है जो किसी को ‘भुगतना’ [दुःख] दे सके। जब कभी हमें अपनी भूल के बिना भुगतना पड़ता है, तब हृदय को चोट लगती है, और वह पूछता है – मेरा क्या कसूर है ? मैंने क्या गलत किया ? भूल किसकी है ? चोर की या जिसका चुराया गया है उसकी ? इन दोनों में से कौन भुगत रहा है ? “जो भुगते उसीकी भूल”। प्रस्तुत संकलन में, दादाश्री ने “भुगते उसीकी भूल” का विज्ञान प्रकट किया है। इसे प्रयोग में लाने से आपकी सारी गुत्थियाँ सुलझ जाएँ, ऐसा अनमोल यह सूत्र है।

Chamatkar: चमत्कार

by Dada Bhagwan

आज के युग में जहाँ विज्ञान ने इतनी प्रगति की है वहाँ लोगो के बीच अभी भी बहुत सारी चमत्कार और जादू-टोना संबंधित भ्रामक मान्यताएँ है| चमत्कार का मतलब है हमारी समझ से परे किसी अद्वितीय शक्ति का अस्तित्व होना| हमारे भारत देश में लोगो को धर्म और चमत्कार के नाम पर गुमराह करना बहुत ही आसान है क्योंकि किसी अवांछित घटना से बचने के लिए लोग इन बातों पर आसानी से भरोसा कर लेते है| ज्ञानी पुरुष दादा भगवान हमें इन चमत्कारों में छुपी हुई सच्चाई से वाकिफ कराते हुए चमत्कार और सिद्धि के बीच का अंतर बताते है| सामान्यतः लोगो में खड़े होने वाले प्रश्न जैसे- चमत्कार कौन करता है? किस तरह वह हमारे जीवन को प्रभावित करता है? क्या हम कोई चमत्कार करके भगवान को प्रसन्न कर सकते है?||इत्यादि के उत्तर हमें इस पुस्तक में मिलते है| दादाश्री स्पष्टतौर पर यही बताना चाहते है कि आत्मा इन सभी बातों से परे हैं और आत्म-साक्षात्कार मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र सरल उपाय है| आध्यात्मिकता और चमत्कार के बीच का सही अंतर जानने के लिए यह किताब अवश्य पढ़े|

Chinta: चिंता

by Dada Bhagwan

चिंता से काम बिगड़ते हैं, ऐसा कुदरत का नियम है। चिंता मुक्त होने से सभी काम सुधरते हैं। पढ़े-लिखे खाते-पीते घरों के लोगों को अधिक चिंता और तनाव हैं। तुलनात्मक रूप से, मज़दूरी करनेवाले, चिंता रहित होते हैं और चैन से सोते हैं। उनके ऊपरी (बॉस) को नींद की गोलियाँ लेनी पड़ती हैं। चिंता से लक्ष्मी भी चली जाती है। दादाश्री के जीवन का एक छोटा सा उदाहरण है। जब उन्हें व्यापार में घाटा हुआ, तो वे किस तरह चिंता मुक्त हुए। “एक समय, ज्ञान होने से पहले, हमें घाटा हुआ था। तब हमें पूरी रात नींद नहीं आई और चिंता होती रहती थी। तब भीतर से उत्तर मिला की इस घाटे की चिंता अभी कौन-कौन कर रहा होगा? मुझे लगा कि मेरे साझेदार तो शायद चिंता नहीं भी कर रहे होंगे। अकेला मैं ही चिंता कर रहा हूँ। और बीवी-बच्चे वगैरह भी हैं, वे तो कुछ जानते भी नहीं। अब वे कुछ जानते भी नहीं, तब भी उनका चलता है, तो मैं अकेला ही कम अक्लवाला हूँ, जो सारी चिंताएँ लेकर बैठा हूँ। फिर मुझे अक्ल आ गई, क्योंकि वे सभी साझेदार होकर भी चिंता नहीं करते, तो क्यों मैं अकेला ही चिंता किया करूँ?” चिंता क्या है? सोचना समस्या नहीं है। अपने विचारों में तन्मयाकर हुआ कि चिंता शुरू। ‘कर्ता’ कौन हैं, यह समझ में आ जाए तभी चिंता जाएगी।

Daan: दान

by Dada Bhagwan

दान का अर्थ होता है किसीको कुछ देना| यह दान पैसों के रूप में हो सकता है, खाने के रूप में या सिर्फ किसी को खुश करने हेतु हो सकता है| दान देने से हमें खुशी मिलती है क्योंकि हमें लगता है कि हमने कुछ अच्छा काम किया है| दान करने से बहुत सारे फायदे होते है| जिसका विस्तारित वर्णन दादाश्री ने अपनी किताब ‘दान’ में किया है|इस किताब में दादाजी हमें यह भी बताते है कि किसे दान दे,क्या दान करना चाहिए, दान कितने प्रकार के होते है,दान करने के क्या फायदे है इत्यादि| दान करने से हम सिर्फ सामने वाले की मदद नहीं कर रहे पर खुद भी बहुत सारी खुशियाँ पाते है|दान का महत्व हमारे जीवन में क्या है, यह अधिक जानने के लिए, यह किताब ज़रूर पढ़े|

Dada Bhagwan?: दादा भगवान?

by Dada Bhagwan

अम्बालाल मुल्जिभई पटेल (जिन्हें हम दादा भगवान के नाम से जानते है), इन्हें जून १९५८ में सूरत स्टेशन पर आत्मा के पूर्ण साक्षात्कार का अनुभव हुआ| मूल भादरण में एक बहुत ही प्रतिष्ठित परिवार में जन्मे अम्बालाल भाई कोन्त्रक्टोर का धंधा करते थे| जून १९५८ की एक शाम वह वड़ोदरा जाने के लिए सूरत स्टेशन पर, अँधेरा होने से पहले अपना शाम का भोजन समाप्त कर, ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे| जब उनका नौकर उनका डब्बा धोने के लिए गया तब उन्हें संपूर्ण ब्रम्हांड का ज्ञान केवल ४८ मिनिटों में हुआ| जगत कौन चलता है? मैं कौन हूँ? मोक्ष क्या है? मुक्ति का अर्थ क्या है? मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है इत्यादि प्रश्नों का उत्तर उन्हें उन ४८ मिनिटों में हुआ| यह आत्म साक्षात्कार केवल एक ही जन्म का फल नहीं था परंतु उनकी जन्मो जनम की खोज का नतीजा था| ‘दादा भगवान’, इस शब्द का प्रयोग उनके भीतर प्रकट हुए भगवान को संबोधित करने के लिए किया जाने लगा| A.M Patel, शादी शुदा थे पर उन्हें बचपन से ही सनातन सुख और शाश्वत धर्म को जानने की कुतूहलता रहती थी| ऐसे अद्वितीय इंसान, मतलब अम्बालाल भाई ने जून १९५८ में लोगो को आत्मा ज्ञान प्राप्त करवाने का आसान तरीका खोज निकला जिसे उन्होंने ‘अक्रम विज्ञान’कहा|

Gnani Purursh 'Dada Bhagwan' Bhag-1: ज्ञानी पुरुष 'दादा भगवान' (भाग-१)

by Dada Bhagwan

हरेक काल चक्र में बहुत से ज्ञानी और महान पुरुष जन्म लेते हैं, लेकिन उनकी आंतरिक ज्ञान दशा का रहस्य अभी भी गुप्त (अप्रगट) ही रह जाता हैं| प्रस्तुत ग्रंथ “ज्ञानी पुरुष” में परम पूज्य दादाभगवान की ज्ञानदशा के पहले के विविध प्रसंग और उनकी विचक्षण जीवनशैली सहित अद्भुत द्रश्यो का तादृष्य, यहाँ विस्तार से जानने को मिलता हैं | एक सामान्य मानव होतें हुए भी उनके अंदर समाहित असामान्य लाक्षनिकताओ रूपी खजाना बाहर प्रगट हुआ हैं | उनके जीवन के मात्र एक प्रसंग में से अद्भुत आध्यात्मिक खुलासे (स्पष्टिकरण) द्वारा प्रस्तुत ग्रंथ के माध्यम से विश्व-दर्शन कराया हैं | जीवन व्यवहार में सही निर्णयशक्ति की सुझ (समझ) तथा व्यवहारिक समझ की अड़चनों के खुलासे द्वारा अनोखी सुझ का भंडार “ज्ञानी पुरुष” ग्रंथ के माध्यम से जगत को प्राप्त होगा | इस पवित्र ग्रंथ का अध्ययन करके, ज्ञानी पुरुष के जीवन-दर्शन का अद्भुत सफ़र करने का अमूल्य अवसर प्राप्त करेंगे...

Gnani Purush Kee Pahachaan: ज्ञानीपुरुष की पहचान

by Dada Bhagwan

कभी ज्ञानीपुरुष मिल जाए, जो मुक्त पुरुष हैं, परमेनन्ट मुक्तिहै, ऐसा कोई मिल जाए तो अपना काम हो जाता है। शास्त्रों के ज्ञानी तो बहुत है, मगर उससे तो कोई काम नहीं चलेगा। सच्चा ज्ञानी चाहिए, मोक्ष का दान देनेवाला चाहिए।

Guru Shishya: गुरु शिष्य

by Dada Bhagwan

लौकिक जगत् में बाप-बेटा, माँ-बेटी, पति-पत्नी, वगैरह संबंध होते हैं। उनमें गुरु-शिष्य भी एक नाजुक संबंध है। गुरु को समर्पित होने के बाद पूरी ज़िंदगी उसके प्रति ही वफादार होकर, परम विनय तक पहुँचकर, गुरु की आज्ञा के अनुसार साधना करके, सिद्धि प्राप्त करनी होती है। लेकिन सच्चे गुरु के लक्षण और सच्चे शिष्य के लक्षण कैसे होते हैं ? उसका सुंदर विवेचन इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। गुरुजनों के लिए इस जगत् में विविध मान्यताएँ प्रवर्तमान है। तब ऐसे काल में यथार्थ गुरु बनाने के लिए लोग उलझन में पड़ जाते हैं। यहाँ पर ऐसी ही उलझनों के समाधान दादाश्री ने प्रश्नकर्ताओं को दिए है। सामान्य समझ से गुरु, सदगुरु और ज्ञानीपुरुष –तीनों को एक साथ मिला दिया जाता है। जब कि परम पूज्य दादाश्री ने इन तीनों के बीच का एक्ज़ेक्ट स्पष्टीकरण किया है। गुरु और शिष्य –दोनों ही कल्याण के मार्ग पर आगे चल सके, उसके लिए तमाम दृष्टीकोणों से गुरु-शिष्य के सभी संबंधों की समझ, लघुतम फिर भी अभेद, ऐसे ग़ज़ब के ज्ञानी की वाणी यहाँ संकलित की गई है।

Hua So Nyay: हुआ सो न्याय

by Dada Bhagwan

कुदरत के न्याय को यदि इस तरह समझोगे की “हुआ सो न्याय” तो आप इस संसार से मुक्त हो जाओगे। लोग जीवन में न्याय और मुक्ति एक साथ ढूँढते हैं। यहाँ पूर्ण विरोधाभास की स्थिति है। ये दोनों आपको एक साथ मिल ही नहीं सकते। प्रश्नों का अंत आने पर ही मुक्ति की शुरूआत होती है। अक्रम विज्ञान में सभी प्रश्नों का अंत आ जाता है, इसलिए यह बहुत ही सरल मार्ग है। दादाश्री की यह अनमोल खोज है की कुदरत कभी अन्यायी हुई ही नहीं है। जगत् न्याय स्वरूप ही है। जो हुआ सो न्याय ही है। कुदरत कोई व्यक्ति या भगवान नहीं है कि उस पर किसी का जोर चल सके। कुदरत यानि साईन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एवीडेन्स। कितने सारे संयोग इकट्ठे हों, तब कार्य होता है। दादाश्री के इस संकलन में, हुआ सो न्याय का विज्ञान प्रस्तुत किया गया है। इस सूत्र का जितना उपयोग जीवन में होगा, उतनी ही शांति बढेगी।

Jagat Karta Kaun?: जगत कर्ता कौन?

by Dada Bhagwan

अनादी कल से जगत की वास्तविकता जानने की मनुष्य की लालसा है मगर वह सही जान नहीं पाया है| मुख्यत: वास्तविकता में मैं कौन हूँ, इस जगत को चलाने वाला कौन है तथा इस जगत का रचयिता कौन है, यह जानना है| प्रस्तुत संकलन में सच्चा कर्ता कौन है, यह रहस्य खुल्ला किया गया है| आमतौर पर अच्छा हुआ तो ‘मैंने किया” मान लेता है और बुरा हुआ तो दूसरे पर आक्षेप देता है कि ‘इसने बिगाड़ दिया|’ नहीं तो ‘मेरी ग्रह दशा बिगड़ गयी है’बोलेगा या तो ‘भगवान् ने किया’ ऐसा भी आक्षेप दे देता है| यह सब रोंग मान्यताएं हैं| भगवांन क्या पक्षपात करने वाला है कि आपका नुकसान करे? यह दुनिया किसने बनाई? अगर बनाने वाला होता तो उसको किसने बनाया? फिर उसको भी किसने बनाया? याने उसका अंत ही नहीं है| और दूसरा यह भी प्रश्न पैदा होता है कि दुनिया उसको बनानी ही थी, तो फिर ऐसी कैसी दुनिया बनाई कि जिसमे सभी दुखी हैं? किसी को भी सुख नहीं है? उसकी मज़ा और अपनी सजा, यह कैसा न्याय?! इस काल में करता सम्बन्धी का सिद्धांत पहली बार विश्व को यथार्थ स्वरुप में परम पूज्य दादा भगवान् ने दिया है और वह यह है कि इस दुनिया में कोई स्वतंत्र कर्ता नहीं है| इस दुनिया को रचने वाला या चलाने वाला कोई भी नहीं है| यह जगत चलता है, वह साइंटिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेंस से चलता है| जिसको परम पूज्य दादाश्री ‘व्यवस्थित शक्ति’ कहते हैं| जगत में कोई भी स्वतंत्र करता नहीं है, मगर, सब नैमितिक कर्ता हैं, सभी निमित हैं| गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था कि, "हे! अर्जुन! तू इस युद्ध में निमित मात्र है, तू युद्ध का कर्ता नहीं है| प्रस्तुत पुस्तिका में करता का रहस्य परम पूज्य दादाश्री की सादी, सरल भाषा में दिल में उतर जाए, इस तरह से समझाया गया है|

Karma Ka Siddhant: कर्म का सिद्धांत

by Dada Bhagwan

'मैंने किया' बोला कि कर्मबंध हो जाता है। ये 'मैंने किया' इसमें इगोइज़्म(अहंकार) है और इगोइज़्म से कर्म बंधा जाता है। जिधर इगोइज़्म ही नहीं, मैंने किया ही नहीं है, वहाँ कर्म नहीं होता है ।

Karma Ka Vignan: कर्म का विज्ञान

by Dada Bhagwan

जब भी हमारे साथ कुछ भी अच्छा या बुरा होता है तो हम हमेशा यही कहते हैं कि – यह सब हमारे कर्मो का ही नतीजा है| पर क्या हम जानते है कि कर्म क्या है और कर्म बंधन कैसा होता है? दादाश्री कहते है कि हमारा सारा जीवन हमारे ही पिछले कर्मो का नतीजा है| जो कुछ भी हमारे साथ अच्छा या बुरा हो रहा हैं, इसके ज़िम्मेदार हम खुद ही है| इस जीवन के कर्मो के बीज तो हमारे पिछले जन्मो में ही पड़ गए थे और अभी हम जो कुछ भी कर रहे है वह सब अगले जन्मों में रूपक में आएगा| लोग अक्सर यही सोचते है कि अच्छे कर्म और बुरे कर्म क्या होते है और किस प्रकार हम कर्म बंधन से मुक्त हो सकते है? दादाजी इसका जवाब देते हुए कहते है कि जिस काम से किसी का भला हो उसे अच्छे कर्म कहते है और जिससे किसी का नुक्सान हो, तो, उसे बुरे कर्म कहते है| कर्म बंधन से मुक्त होने का सबसे आसान और सरल उपाय यही है कि हम नए कर्मो के बीज ना डाले और अभी जो कुछ भी हो रहा है उसको समता से और समभाव से पूरा करे| ऐसा करने से नए कर्मो के बीज नहीं पड़ेंगे और हम इस जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो पाएँगे| कर्म का विज्ञान और उसे चलाने वाली व्यवस्थित शक्ति के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने, ‘कर्म का विज्ञान’, यह किताब ज़रूर पढ़े और अपने जीवन को सुखमय बनाये|

Klesh Rahit Jeevan: क्लेश रहित जीवन

by Dada Bhagwan

क्या आप जीवन में उठनेवाले विभिन्न क्लेशों से थक चुके हो ? क्या आप हैरान हो कि नित्य नए क्लेश कहाँ से उत्पन्न हो जाते हैं ? क्लेश रहित जीवन के लिए आपको केवल पक्का निश्चय करना है कि आप लोगों के साथ सारा व्यवहार समभाव से निपटाओगे। यह चिंता नहीं करनी कि आप इसमें सफल होंगे या नहीं। केवल दृढ निश्चय करना है। फिर आज या कल, जीवन में शांति आकर ही रहेगी। हो सकता है कि इसमें कुछ साल भी लग जाएँ। क्योंकि आपके बहुत चीकने कर्म हैं। यदि बीवी-बच्चों के साथ बहुत उलझे हुए कर्म हों तो निकाल करने में अधिक समय लग जाता है। करीबी लोगों के साथ उलझने क्रमशः ही समाप्त होती हैं। यदि आप एक बार समभाव से निकाल करने का दृढ निश्चय कर लेंगे तो आपके सभी क्लेशों का अंत आएगा। चिकने कर्मों का निकाल करते वक्त आपको अत्यंत जागृत रहना होगा। साँप चाहे कितना भी छोटा हो, आपको सावधानी रहते हुए आगे बढ़ना होगा। अगर आपने लापरवाही और सुस्ती दिखाई तो इन मामलों को सुलझाने में असफल होंगे। व्यवहार में सभी के साथ समभाव से निकाल करने के दृढ़ निश्चय के बाद, यदि कोई आपको कटु वाणी बोल दे और आपकी भी कटु वाणी निकल जाए, तो आपके बाहरी व्यवहार का कोई महत्व नहीं, क्योकि आपकी घृणा समाप्त हो चुकी है। और आपने समभाव से निकाल का दृढ़ निश्चय कर रखा है। घृणा अहंकार का भाव है और वाणी शरीर का भाव है। अगर आपने समभाव से निकाल करने का दृढ़ निश्चय किया है, तो आप अवश्य सफल होंगे तथा आपके सभी कर्म भी समाप्त होंगे। आज अगर आप किसी का लोन नहीं चुका पाते, तो भविष्य में ज़रूर चुकता कर पाएँगे। आपके ऋण दाता आपसे आखिरकर आपसे उगाही कर ही लेंगे। “प्रतिशोध के सभी भावनाओं से मुक्त होने के लिए आपको परम पूज्य दादाश्री के पास आकर ज्ञान ले लेना चाहिए। मैं आपको इसी जीवन में प्रतिशोध की सभी भावनाओं से मुक्त होने का रास्ता दिखाऊँगा। जीवन से थके हुए लोग मृत्यु क्यों ढूँढते हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि वे जीवन के इस तनाव का सामना नहीं कर पाते। इतने अधिक दबाव में आप कितने दिन जीवित रह सकते हो ? कीड़े-मकोडों की तरह, आज का मनुष्य निरंतर संताप में है। मनुष्य का जीवन मिलने के बाद किसी को कोई दुःख क्यों हो? सारा संसार संताप में है। और जो संताप में नहीं है, वे काल्पनिक सुखों में खोए हुए है। इन दोनों छोरों के बीच संसार झूल रहा है। आत्मज्ञानी होने के बाद, आप सभी कल्पनाओं और वेदनाओं से मुक्त हो जाओगे।’

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