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Zindagi Benakaab: ज़िंदगी बेनकाब

by S. P. Bharill

ज़िंदगी की उलझन का मतलब विचारों की उलझन है और हमारे विचार तभी सुलझ सकते हैं जब हम जीवन को समझ लें। इसके लिए प्रकृति के नियम, विश्व के संचालन की व्यवस्था और अध्यात्म के सिद्धांतों के साथ-साथ उनके रहस्यों को स़िर्फ समझना ही नहीं होगा बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारना भी होगा। यह किताब इसमें आपकी मदद ही नहीं करेगी बल्कि उस दिशा में आपको ले कर भी जायेगी। अगर आप उलझनों से मुक्त खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं, आप जानना चाहते हैं कि मैं कौन हूँ, आप अपने आपको आइने में देखना चाहते हैं, आप अपने मुखौटे उतार फेंकना चाहते हैं, आप संबंधों में मधुरता चाहते हैं तथा ऊर्जा और उत्साह से भरपूर जीवन का आनंद लेना चाहते हैं, तो इस किताब को पढ़ना होगा। समय तीव्र गति से बह रहा है, तो समय रहते ही हम इन तथ्यों को समझकर, प्रतिदिन की दिनचर्या में उतार कर अपने जीवन में परिवर्तन ले आएँ, और आज ही इस किताब को पढ़ना शुरू करें। विश्वास मानिये, आप इस प्रयास में सफल होंगे।

Zindaginama: ज़िन्दगीनामा

by Krishna Sobti

लेखन को जीवन का पर्याय माननेवाली कृष्णा सोबती की कलम से उतरा एक ऐसा उपन्यास जो सचमुच ज़िन्दगी का पर्याय है—ज़िन्दगीनामा। ज़िन्दगीनामा—जिसमें न कोई नायक। न कोई खलनायक। सिर्फ लोग और लोग और लोग। ज़िन्दादिल। जाँबाज़। लोग जो हिन्दुस्तान की ड्योढ़ी पंचनद पर जमे, सदियों गाज़ी मरदों के लश्करों से भिड़ते रहे। फिर भी फसलें उगाते रहे। जी लेने की सोंधी ललक पर ज़िन्दगियाँ लुटाते रहे। ज़िन्दगीनामा का कालखंड इस शताब्दी के पहले मोड़ पर खुलता है। पीछे इतिहास की बेहिसाब तहें। बेशुमार ताकतें। ज़मीन जो खेतिहर की है और नहीं है, वही ज़मीन शाहों की नहीं है मगर उनके हाथों में है। ज़मीन की मालिकी किसकी है ? ज़मीन में खेती कौन करता है ? ज़मीन का मामला कौन भरता है ? मुजारे आसामियाँ। इन्हें जकडऩों में जकड़े हुए शोषण के वे कानून जो लोगों को लोगों से अलग करते हैं। लोगों को लोगों में विभाजित करते हैं। ज़िन्दगीनामा का कथानक खेतों की तरह फैला, सीधा-सादा और धरती से जुड़ा हुआ। ज़िन्दगीनामा की मजलिसें भारतीय गाँव की उस जीवन्त परम्परा में हैं जहाँ भारतीय मानस का जीवन-दर्शन अपनी समग्रता में जीता चला जाता है। ज़िन्दगीनामा—कथ्य और शिल्प का नया प्रतिमान, जिसमें कथ्य और शिल्प हथियार डालकर ज़िन्दगी को आँकने की कोशिश करते हैं। ज़िन्दगीनामा के पन्नों में आपको बादशाह और फकीर, शहंशाह, दरवेश और किसान एक साथ खेतों की मुँडेरों पर खड़े मिलेंगे। सर्वसाधारण की वह भीड़ भी जो हर काल में, हर गाँव में, हर पीढ़ी को सजाए रखती है।

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