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Rumniya

by Rukmini Banerji

रुमनिमा आणि आजी ही मजेदार जोडी आहे, कारण त्यांना माहीत आहे शेवटी सगळं ठीकठाक होते. रुमनियाची ही सुंदर गोष्ट वाचा!

sushant Test

by Sushant Bankar

Test

Sheikh Chilli ke Karname

by Dharampal Bariya

The Best of Sheikh Chilli ke Karname by Dharampal Bariya is one of the best story books meant for young readers. The book consists of stories of Sheikh Chilli, a simpleton but very eminent character among children all over the subcontinental India. Not only the children but also the grown-ups are fascinated by the attributes of Sheikh Chilli. The author has narrated the stories in very interesting and reader-friendly fashion. They are sure to entertain everyone.

Dhanesh Ke Bachche Ne Udna Sikha

by Dilip Kumar Barua

“धनेश के बच्चे ने उड़ना सीखा” कहानी नर और मादा चिड़िया और उसके बच्चे की कहानी हैं। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा स्वंय उड़ना सीखे। इसके लिए वे एक योजना बनाते हैं और सफल भी हो जाते हैं। "Dhanesh Ke Bachche Ne Udna Sikha" is the story of the male and female birds and their children. They want their child to learn to fly on their own. For this, they make a plan and become successful too.

Aadar Karne Vaala Aman

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Aagyaakaaree Aman

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Aman Bana Bahaadur

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Aman Jimmedaar Ban Gaya

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Aman ne Laalach Chhoda

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Emaandaar Bana Aman

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Safaai Pasand Aman

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Samay Ka Paaband Aman

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Vinamra Aman

by Reena Batra

मूल्य शिक्षा के आधार पर कहानियाँ

Chatpat Bandar aur Pencil

by Lalita Bava

‘चटपट बंदर’एक शरारती बंदर की कहानी है। उसे कमरे की खिड़की में छोटे बच्‍चे की पेंसिल रखी मिलती है। चटपट पेंसिल उठा लेता है। वह पेंसिल की मदद से सभी जानवरों को परेशान करता है। मधुमक्खियों के काटने पर दर्द से परेशान होता है और मां के कहने पर पेंसिल को वापस खिड़की में रख देता है। "Chatpat Bandar” is the story of a mischievous monkey. Once he found a pencil in the window of a room where a child had kept his pencil. He started troubling its friends - rabbit, squirrel, bear, elephant using pencil. In the end when bees bites the monkey, he troubled by pain and the insistence of his mother puts pencil back to the window.

Tisca Ashcharya lok Mein

by Eva Bell

The book is about a girl Tiska who reached a forest following a bird and she meet a magician Rararumpa. The magician gives a lot of happiness. She also met with children who were learning to be happy. प्रस्‍तुत पुस्‍तक में एक लड़की टिस्‍का की कहानी है जो एक चिड़िया का पीछा करते हुये जंगल पहुंच जाती है और वहाँ उसकी मुलाकात एक जादूगर रारारूम्‍पा से होती है जो उसे ढेर सारी खुशियां देता है और फिर उन बच्‍चों से मिली जो सीख रहे हैं कि कैसे खुश रहना चाहिए।

One Indian Girl: वन इंडियन गर्ल

by Chetan Bhagat

हाय, मैं राधिका मेहता हूँ और इसी हफ्ते मेरी शादी होने जा रही है। मैं एक इंवेस्टमेंट बैंक गोल्डमान साक्स के लिए काम करती हूँ। मेरी कहानी पढ़ने के लिए शुक्रिया। बहरहाल, मैं आपको एक बात बता देना चाहती हूँ। शायद आप मुझे बहुत ज़्यादा पसंद ना करें। क्योंकि: एक, मैं बहुत पैसा कमाती हूँ। दो, दुनिया की हर चीज़ को लेकर मेरे अपने विचार हैं। और तीन, इससे पहले मेरा एक बॉयफ्रेंड रह चुका है। ओके, एक नहीं शायद दो! अगर मैं लड़का होती तो आपको इन तमाम बातों से कोई तकलीफ नहीं होती। लेकिन चूँकि मैं लड़की हूँ, इसलिए ये तमाम बातें मुझे बहुत हरदिल अज़ीज़ तो नहीं ही बनाती होंगी, है ना? चेतन भगत लेखक की कलम से निकली एक शानदार कहानी, जो आधुनिक भारत की एक लड़की के नज़रिये से हमें बताती है कि आज प्यार, सपनों, कैरियर और फेमिनिज्म के क्या मायने हैं।

Aatam Shakshatkar: आत्मसाक्षात्कार

by Dada Bhagwan

जीवमात्र क्या ढूंढता है? आनंद ढूंढता है, लेकिन घड़ीभर भी आनंद नहीं मिल पाता | विवाह समारोह में जाएँ या नाटक में जाएँ, लेकिन वापिस फिर दुःख आ जाता है | जिस सुख के बाद दुःख आए, उसे सुख ही कैसे कहेंगे? वह तो मूर्छा का आनंद कहलाता है | सुख तो परमानेन्ट होता है | यह तो टेम्परेरी सुख हैं और बल्कि कल्पित हैं, माना हुआ है | हर एक आत्मा क्या ढूंढता है? हमेशा के लिए सुख, शाश्वत सुख ढूंढता है | वह ‘इसमें से मिलेगा, इसमें से मिलेगा | यह ले लूँ, ऐसा करूँ, बंगला बनाऊ तो सुख आएगा, गाड़ी ले लूँ तो सुख मिलेगा’, ऐसे करता रहता है | लेकिन कुछ भी नहीं मिलता | बल्कि और अधिक जंजालों में फँस जाता है | सुख खुद के अंदर ही है, आत्मा में ही है | अत: जब आत्मा प्राप्त करता है, तब ही सनातन (सुख) ही प्राप्त होगा |

Adjust Everywhere: ऐडजस्ट एवरीव्हेयर

by Dada Bhagwan

यदि एक सीवर में बदबू आए तो क्या हम सीवर से लड़ते हैं ? इसी प्रकार ये झगडालू दृष्टिकोणवाले मनुष्य भी दुर्गंध फैलाते हैं, तो क्या हम उनसे कुछ कहने जाएँ ? दुर्गंध फैलाए वे सभी सीवर कहलाएँ, तथा सुगंध फैलाए वे सभी बाग़ कहलाएँगे। जिस-जिस से दुर्गंध आती है, वे सभी कहते हैं, “आप हमसे वीतराग रहें” | हमने जीवन में अनेकों बार, परिस्थितियों के साथ समझौता किया है। उदाहरणत: बारिश में हम छाता लेकर जाते हैं। पढाई पसंद हो या न हो करनी ही पड़ती है। ये सभी एडजस्टमेन्ट लेने पड़ते हैं। फिर भी नकारात्मक लोगों से सामना होने पर हम टकराव में आ जाते हैं। ऐसा क्यों होता है ? परम पूज्य दादाश्री ने खुलासा किया है कि ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’ वह ‘मास्टर की’ है जो आपके संसार को सुखमय बना देगी। यह सरल सूत्र आपके संसार को बदल देगा! और जानने के लिए आगे पढ़े

Ahinsa: अहिंसा

by Dada Bhagwan

इन छोटे-छोटे जीवों को मारना, वह द्रव्यहिंसा कहलाता है और किसी को मानसिक दुःख देना, किसी पर क्रोध करना, गुस्सा होना, वह सब भावहिंसा कहलाता है। लोग चाहे जितनी अहिंसा पाले, लेकिन अहिंसा इतनी आसानी से नहीं पाली जा सकती। और वास्तव में क्रोध-मान-माया-लोभ ही हिंसा हैं। द्रव्यहिंसा कुदरत के लिखे अनुसार ही चलती है। इसमें किसी का चले, ऐसा नहीं है। इसलिए भगवान ने तो क्या कहा है कि सबसे पहले, खुद को कषाय नहीं हो, ऐसा करना। क्योंकि ये क्रोध-मान-माया-लोभ, वे सबसे बड़ी हिंसा हैं। द्रव्यहिंसा हो तो भले हो, लेकिन भाव हिंसा नहीं होनी चाहिए। लेकिन लोग तो द्रव्यहिंसा रोकते हैं और भाव हिंसा तो चलती ही रहती है। इसलिए किसी ने निश्चित किया हो कि “मुझे तो मारने ही नहीं हैं” तो भाग्य में कोई मरने नहीं आता। अब वैसे तो उसने स्थूल हिंसा बंद कर दी, कि मुझे किसी जीव को मारना ही नहीं है। लेकिन बुद्धि से मारना, ऐसा निश्चित किया, तो उसका बाज़ार खुला ही रहता है। तब वहाँ कीट पतंगे टकराते रहते हैं। और वह भी हिंसा ही है न! अहिंसा के बारे में इस काल के ज्ञानी, परम पूज्य दादाश्री के श्रीमुख से निकली हुई वाणी, इस ग्रंथ में संकलित की गई है। इसमें हिंसा और अहिंसा – दोनों के तमाम रहस्यों से पर्दा हटाया है।

Antahkaran Ka Swaroop: अंतकरण का स्वरूप

by Dada Bhagwan

अंत: करण के चार अंग हैं : मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार| हरेक का कार्य अलग अलग है| एक समय में उनमे से एक ही कार्यन्विंत होता है| मन क्या है? मन ग्रंथिओं का बना हुआ है| पिछले जन्म में अज्ञानता से जिसमे राग द्वेष किये, उनके परमाणु खींचे और उनका संग्रह होकर ग्रंथि हो गयी| वह ग्रंथि इस जन्म में फूटती है तो उसे विचार कहा जाता है| विचार डिस्चार्ज मन है| विचार आता है उस समय अहंकार उसमे तन्मयाकार हो जाता है| यदि वह तन्मयाकार नहीं हुआ हो तो डिस्चार्ज होकर मन खाली हो जाता है| जिसके ज्यादा विचार उसकी मनोग्रंथि बड़ी होती है| अंत: करण का दूसरा अंग है, चित्त | चित्त का स्वभाव भटकना है| मन कभी नहीं भटकता| चित्त सुख खोजने के लिए भटकता रहता है| किन्तु वह सारे भौतिक सुख विनाशी होने की वजह से उसकी खोज का अंत ही नहीं आता| इसलिए वह भटकता रहता है| जब आत्मसुख मिलता है तभी उसके भटकन का अंत आता है| चित्त ज्ञान दर्शन का बना हुआ है| अशुद्ध ज्ञान+ दर्शन यानी अशुद्ध चित्त, संसारी चित्त और शुद्ध ज्ञान+ दर्शन यानी शुद्ध चित्त, यानी शुद्ध आत्मा| बुद्धि, आत्मा की इनडायरेक्ट लाइट है और प्रज्ञा डायरेक्ट लाइट है| बुद्धि हमेशा संसारी मुनाफा नुक्सान बताती है और प्रज्ञा हमेशा मोक्ष का ही रास्ता बताती है| इन्द्रियों के ऊपर मन, मन के ऊपर बुद्धि, बुद्धि के ऊपर अहंकार और इन सबके ऊपर आत्मा है| बुद्धि,वह मन और चित्त दोनों में से एक का सुनकर निर्णय करती है और अहंकार अँधा होने से बुद्धि के कहे अनुसार हस्ताक्षर कर देता है| उसके हस्ताक्षर होते ही वह कार्य बाह्यकरण में होता है| अहंकार करने वाला भोक्ता होता है, वह स्वयं कुछ नहीं करता, वह सिर्फ मानता है कि मैंने किया| और वह उसी समय कर्त्ता हो जाता है| फिर उसे भोक्ता होना ही होता है| संयोग करता हैं, मैं नहीं, यह ज्ञान होते ही अकर्ता होता है, फिर उसके कर्म चार्ज नहीं होते| अंत: करण की सारी क्रियाएँ मैकेनिकल हैं| इसमें आत्मा को कुछ करना नहीं होता| आत्मा तो सिर्फ ज्ञाता द्रष्टा और परमानंदी है| केवल ज्ञानीपुरुष ही अपने अंत: करण से अलग रहते हैं| आत्मा में ही रह कर उसका यथार्थ वर्णन कर सकते हैं| ज्ञानीपुरुष संपूज्य श्री दादाश्री ने अंत: करण का बहुत ही सुन्दर और स्पष्ट वर्णन किया है|

Aptavani Shreni 1: आप्तवाणी श्रेणी १

by Dada Bhagwan

यह संसार किसने बनाया? क्या यह संसार आपके लिए परेशानी का कारण है? क्या आपको आश्चर्य होता है कि यहाँ सबकुछ कैसे होता है? कैसे हम अनगिनित जन्मों में भटक रहे हैं। यह सब करनेवाला कौन है? धर्म क्या है? मोक्ष क्या है? आध्यात्मिकता और धर्म में क्या फर्क है? शुद्ध आत्मा क्या है? मन, शरीर और वाणी के क्या कार्य हैं? लौकिक रिश्तों को कैसे निभाएँ? भाग्य और कर्म का अंतर कैसे समझें? अहंकार क्या है? क्रोध-लोभ-मोह, क्या वे अहंकार के कारण हैं? जिन्हें मोक्ष पाने की इच्छा है या जो मोक्ष चाहते हैं, उनकी ज़िंदगी में ऐसे अनेक प्रश्न व समस्याएँ होगीं। ‘स्वयं’का ज्ञान या ‘मैं कौन हूँ’यह सब का अंतिम लक्ष्य है। ‘मैं कौन हूँ’के ज्ञान बगैर मोक्ष नहीं मिल सकता। यह ज्ञान केवल ज्ञानीपुरुष से ही प्राप्त हो सकता है। इस पुस्तक में ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री द्वारा दिए गए बहुत सी समस्याओं के उत्तर संकलित हैं। इस दिव्य पुस्तक का ज्ञान उन लोगों के लिए हैं जिनकी वैज्ञानिक सोच है, जिन्हें आत्मिक शांति चाहिए और जो संसार की परेशानियों से मुक्त होना चाहते हैं।

Aptavani Shreni 12 (Purvadh): आप्तवाणी श्रेणी १२ (पूर्वार्ध)

by Dada Bhagwan

अक्रम विज्ञानी परम पूज्य दादाश्री ने जगह-जगह महात्माओं की व्यवहारिक उलझनें, आज्ञा में रहने में आने वाली मुश्किलें और सूक्ष्म जागृति में कैसे रहें, इनके खुलासे किए हैं। जागृति में ‘मैं चंदूलाल हूँ’ (वाचक को अपना नाम समझना है) की मान्यता में से इस मान्यता में आना है कि ‘मैं शुद्धात्मा ही हूँ’, ‘अकर्ता ही हूँ’, ‘केवल ज्ञाता-दृष्टा ही हूँ’, बाकी सब पिछले जन्म में किए गए ‘चार्ज’ का ‘डिस्चार्ज’ ही है, भरा हुआ माल ही निकलता है, किसी भी संयोग में उसमें से नये ‘कॉज़ेज़’ (कारण) उत्पन्न ही नहीं होते, आप सिर्फ ‘इफेक्ट’ को ही ‘देखते’ हो वगैरह। आत्मजागृति ही मोक्ष की ओर ले जाती है। इस पुस्तक में दादाश्री की हृदयस्पर्शी वाणी संकलित हुई है, जिसमें उन्होंने जागृति में रहने के अलग-अलग तरीकों का वर्णन किया है, जो आत्मकल्याण के लिए सब से महत्वपूर्ण हैं। जागृति प्राप्त करने के लिए और उसे बढ़ाने के लिए परम पूज्य दादाश्री अपने आप से जुदापन, अपने आप से बातचीत के प्रयोग द्वारा ‘ज्ञाता-दृष्टा’ पद में रहना, कर्म के चार्ज और डिस्चार्ज के सिद्धांत को समझकर उनका उपयोग करना वगैरह का दर्शन स्पष्ट किया है। महात्माओं की आत्मजागृति को बढ़ाने में यह पुस्तक बहुत सहायक होगी।

Aptavani Shreni 13 (Purvadh): आप्तवाणी श्रेणी १३ (पूर्वार्ध)

by Dada Bhagwan

आत्मार्थियों ने आत्मा से संबंधित अनेक बातें अनेक बार सुनी होंगी, पढ़ी भी होंगी लेकिन उसकी अनुभूति, वह तो एक गुह्यत्तम चीज़ है! आत्मानुभूति के साथ-साथ पूर्णाहुति की प्राप्ति के लिए अनेक चीज़ों को जानना ज़रूरी है, जैसे कि प्रकृति का साइन्स, पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) को देखना-जानना, कर्मों का विज्ञान, प्रज्ञा का कार्य, राग-द्वेष, कषाय, आत्मा की निरालंब दशा, केवलज्ञान की दशा और आत्मा व इस स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के तमाम रहस्यों का खुलासा, जो मूल दशा तक पहुँचने के लिए माइल स्टोन के रूप में काम आते हैं। जब तक ये संपूर्ण रूप से, सर्वांग रूप से दृष्टि में, अनुभव में नहीं आ जाते, तब तक आत्मविज्ञान की पूर्णाहुति की प्राप्ति नहीं हो सकती। और इन तमाम रहस्यों का खुलासा संपूर्ण अनुभवी आत्म विज्ञानी के अलावा और कौन कर सकता है? पूर्वकाल के ज्ञानी जो कह गए हैं, वह शब्दों में रहा है, शास्त्रों में रहा है और उन्होंने उनके देशकाल के अधीन कहा था, जो आज के देशकाल के अधीन काफी कुछ समझ में और अनुभव में फिट नहीं हो पाता। इसलिए कुदरत के अद्भुत नज़राने के रूप में इस काल में आत्म विज्ञानी अक्रम ज्ञानी परम पूज्य दादाश्री में पूर्णरूप से प्रकट हुए ‘दादा भगवान’को स्पर्श करके पूर्ण अनुभव सिद्ध वाणी का फायदा हम सभी को मिला है।

Aptavani Shreni 13 (Uttarardh): आप्तवाणी श्रेणी १३ (उत्तरार्ध)

by Dada Bhagwan

परम पूज्य दादाश्री ने कभी भी हाथ में कलम नहीं ली थी। मात्र उनके मुखारविंद से, उनके अनुसार टेपरिकॉर्डर में से मालिकी रहित स्याद्वाद वाणी, निमित्त मिलते ही देशना के रूप में निकलने लगती थी! उन्हें ऑडियो केसेट में रिकॉर्ड करके, संकलन करके सुज्ञ साधकों तक पहुँचाने के प्रयास हुए हैं। उनमें से आप्तवाणियों का अनमोल ग्रंथ संग्रह प्रकाशित हुआ है। आप्तवाणी के बारह ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं और अभी तेरहवाँ ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है, जो पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभाजित किया गया है।

Aptavani Shreni 14 (Bhaag-1): आप्तवाणी श्रेणी १४ (भाग -१)

by Dada Bhagwan

प्रस्तुत पुस्तक में आत्मा के गुणधर्मो का स्पष्टिकरण (खुला) किया गया हैं, और उन कारणों की भी पहचान कराई गई हैं, की जिनके कारण हम आत्मा का अनुभव प्राप्त करने में असमर्थ रहें हैं | पुस्तक को दो भागों में विभाजित किया गया हैं | पहले भाग में ब्रह्मांड के छ: अविनाशी तत्वों का वर्णन, विशेषभाव (मैं), और अहंकार की उत्त्पति के कारणों का विश्लेषण किया हैं | आत्मा अपने मूल स्वाभाव में रहकर, संयोगो के दबाव और अज्ञानता के कारण एक अलग ही अस्तित्व(मैं) खड़ा हो गया हैं | “मैं” यह फर्स्ट लेवल का और “अहम्” यह सेकंड लेवल का अलग अस्तित्व हैं | राँग बिलीफ जैसे कि “मैं चंदुलाल हूँ”, “मैं कर्ता हूँ” उत्पन्न (खड़ी) होती हैं और परिणाम स्वरुप क्रोध-मान-माया और लोभ ऐसी राँग बिलीफ़ो में से उत्पन्न हुए हैं | “मैं चंदुलाल हूँ” यह बिलीफ सभी दुखों का मूल हैं | एक बार यह बिलीफ चलीजाए ,तो फिर कोई भी दुःख नहीं रहता हैं |

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