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Ahinsa: अहिंसा

by Dada Bhagwan

इन छोटे-छोटे जीवों को मारना, वह द्रव्यहिंसा कहलाता है और किसी को मानसिक दुःख देना, किसी पर क्रोध करना, गुस्सा होना, वह सब भावहिंसा कहलाता है। लोग चाहे जितनी अहिंसा पाले, लेकिन अहिंसा इतनी आसानी से नहीं पाली जा सकती। और वास्तव में क्रोध-मान-माया-लोभ ही हिंसा हैं। द्रव्यहिंसा कुदरत के लिखे अनुसार ही चलती है। इसमें किसी का चले, ऐसा नहीं है। इसलिए भगवान ने तो क्या कहा है कि सबसे पहले, खुद को कषाय नहीं हो, ऐसा करना। क्योंकि ये क्रोध-मान-माया-लोभ, वे सबसे बड़ी हिंसा हैं। द्रव्यहिंसा हो तो भले हो, लेकिन भाव हिंसा नहीं होनी चाहिए। लेकिन लोग तो द्रव्यहिंसा रोकते हैं और भाव हिंसा तो चलती ही रहती है। इसलिए किसी ने निश्चित किया हो कि “मुझे तो मारने ही नहीं हैं” तो भाग्य में कोई मरने नहीं आता। अब वैसे तो उसने स्थूल हिंसा बंद कर दी, कि मुझे किसी जीव को मारना ही नहीं है। लेकिन बुद्धि से मारना, ऐसा निश्चित किया, तो उसका बाज़ार खुला ही रहता है। तब वहाँ कीट पतंगे टकराते रहते हैं। और वह भी हिंसा ही है न! अहिंसा के बारे में इस काल के ज्ञानी, परम पूज्य दादाश्री के श्रीमुख से निकली हुई वाणी, इस ग्रंथ में संकलित की गई है। इसमें हिंसा और अहिंसा – दोनों के तमाम रहस्यों से पर्दा हटाया है।

Aptavani Shreni-1: आप्तवाणी श्रेणी –१

by Dada Bhagwan

यह संसार किसने बनाया? क्या यह संसार आपके लिए परेशानी का कारण है? क्या आपको आश्चर्य होता है कि यहाँ सबकुछ कैसे होता है? कैसे हम अनगिनित जन्मों में भटक रहे हैं। यह सब करनेवाला कौन है? धर्म क्या है? मोक्ष क्या है? आध्यात्मिकता और धर्म में क्या फर्क है? शुद्ध आत्मा क्या है? मन, शरीर और वाणी के क्या कार्य हैं? लौकिक रिश्तों को कैसे निभाएँ? भाग्य और कर्म का अंतर कैसे समझें? अहंकार क्या है? क्रोध-लोभ-मोह, क्या वे अहंकार के कारण हैं? जिन्हें मोक्ष पाने की इच्छा है या जो मोक्ष चाहते हैं, उनकी ज़िंदगी में ऐसे अनेक प्रश्न व समस्याएँ होगीं। ‘स्वयं’ का ज्ञान या ‘मैं कौन हूँ’ यह सब का अंतिम लक्ष्य है। ‘मैं कौन हूँ’ के ज्ञान बगैर मोक्ष नहीं मिल सकता। यह ज्ञान केवल ज्ञानीपुरुष से ही प्राप्त हो सकता है। इस पुस्तक में ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री द्वारा दिए गए बहुत सी समस्याओं के उत्तर संकलित हैं। इस दिव्य पुस्तक का ज्ञान उन लोगों के लिए हैं जिनकी वैज्ञानिक सोच है, जिन्हें आत्मिक शांति चाहिए और जो संसार की परेशानियों से मुक्त होना चाहते हैं।

Aptavani Shreni-2: आप्तवाणी-श्रेणी-२

by Dada Bhagwan

जिसे छूटना ही है उसे कोई बाँध नहीं सकता और जिसे बंधना ही है उसे कोई छुड़वा नहीं सकता! - परम पूज्य दादाश्री| यह ज्ञान ग्रंथ या धर्म ग्रंथ नहीं है, लेकिन विज्ञान ग्रंथ है| इसमें आंतरिक विज्ञान का, वीतराग विज्ञान का ज्ञानार्क जो कि परम पूज्य दादाश्री के श्रीमुख से प्रकट हुआ है, उसे प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है| यह ज्ञानग्रंथ तत्व चिंतकों, विचारकों तथा सच्चे जिज्ञासुओं के लिए अत्यंत उपयोगी रहेगा| भाषा सादी और एकदम सरल होने के कारण सामान्य जन को भी वह पूरा-पूरा फल दे सकेगी| सुज्ञ पाठक गहराई से इस महान ग्रंथ का चिंतन मनन करेंगे तो अवश्य समकित प्राप्त करेंगे|

Aptavani Shreni-3: आप्तवाणी श्रेणी-३

by Dada Bhagwan

ज़िंदगी में लोगों के बहुत से लक्ष्य और उद्देश होते हैं, लेकिन वे सबसे बुनियादी सवाल का जवाब नहीं दे पाते कि ‘मैं कौन हूँ’। बल्कि हममें से अधिकतर लोग यह नहीं जानते। अनंत समय से लोग संसार के भौतिक साधनों के पीछे भागते रहे हैं। सिर्फ ज्ञानीपुरुष ही आत्म साक्षात्कार करवा सकते हैं और आपको संसार के भौतिक बंधनों से मुक्ति दिलवा सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने आत्मा के गुणों और अन्य अनेकों विषयों जैसे ‘स्वयं’ के ज्ञान, दर्शन तथा शक्तियों के बारे में बताया है। सुख, स्वसत्ता, परसत्ता, स्वपरिणाम, परपरिणाम, व्यवहार आत्मा, निश्चय आत्मा तथा अनेक विषयों के बारे मे भी बताया है। पुस्तक के दुसरे भाग में परम पूज्य दादाश्री ने ‘क्लेश रहित जीवन कैसे जीएँ’ इसकी चाबी दी है तथा यह भी बताया है कि सही सोच से परिवार में बिना दुखी हुए कैसे व्यव्हार करें जैसे-बच्चों से व्यव्हार, दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारना, दूसरों के साथ तालमेल बिठाना, सांसारिक संबंधों को कैसे निभाएँ, परिवार, मेहमान, बड़ों के साथ, अलग-अलग व्यक्तित्ववाले सदस्यों से कैसे व्यवहार करें, रिश्तों को सामान्य कैसे करें इत्यादि... इस पुस्तक का अध्ययन करके जीवन में उतारने से जीवन हमेशा के लिए शांति और आनंदमय हो जाएगा।

Aptavani Shreni-4: आप्तवाणी श्रेणी -४

by Dada Bhagwan

तुम्ही जीवनात होणाऱ्या क्लेशांपासून थकून गेला आहात का? आणि चकित आहात की हे नवीन क्लेश कुठून बरे उत्पन्न होतात? क्लेश रहित जीवनासाठी तुम्हाला फक्त पक्का निश्चय करायचा आहे की लोकांसोबत असलेला व्यवहार तुम्ही समताभावे पूर्ण कराल आणि तेही त्यात यश मिळेल की नाही याची चिंता केल्याशिवाय. मग एक दिवस तुम्हाला तुमच्या जीवनात नक्कीच शांती लाभेल. जर बायको-मुलांसोबत अधिक गुंतागुंतीचे कर्म असतील तर त्यांचा निकाल करण्यात जरा जास्त वेळ लागतो. जवळच्या माणसांसोबत असलेला गुंता हळूहळू संपुष्टात येतो. चिकट कर्मांचा निकाल करतेवेळी तुम्हाला अतिशय जागृत राहावे लागेल. जर तुम्ही निष्काळजीपणा आणि आळस दाखवलात तर हा सर्व गुंता सोडवण्यात तुम्हाला अपयश मिळेल. जर कोणी तुम्हाला कटू शब्द बोलला आणि त्यावर तुमचीही जर कटू वाणी निघाली तरीही तुमच्या बाहेरील व्यवहार इतका महत्वपूर्ण नाही कारण तुमची घृणा समाप्त झाली आहे आणि तुम्ही समभावे निकाल करण्याचा दृढ निश्चय केलेला आहे. च्च्बदला घेण्याच्या सर्व भावनांपासून मुक्त होण्यासाठी तुम्हाला परम पूज्य दादाश्रींकडे येऊन ज्ञान घेतले पाहिजे. मी तुम्हाला मुक्त होण्याचा रस्ता दाखवेल. जीवनात थकलेली माणसे मृत्यूला का कवटाळतात? याचे कारण ते जीवनातील ताण-तनावाचा सामना करु शकत नाही. इतक्या अधिक ताण-तनावात तुम्ही किती दिवस जगू शकाल? किड्या-मुंग्याप्रमाणे आजचा मनुष्य निरंतर त्रासलेला आहे. मनुष्य जीवन मिळाल्यानंतरही कोणी दु:खी का असावे? संपूर्ण जग दु:खातच आहे आणि जो दु:खात नाही तो काल्पनिक सुखात हरवलेला आहे. या दोन टोकांमध्ये जीवत झुलत आहे. आत्मज्ञान प्राप्त झाल्यानंतर तुम्ही सर्व कल्पना आणि दु:खांपासून मुक्त व्हाल.ज्ज् दादाश्रींच्या या पुस्तकात क्लेश रहित जीवन जगण्याच्या चाव्या आणि योग्य समज देण्यात आली आहे.

Aptavani Shreni-5: आप्तवाणी श्रेणी -५

by Dada Bhagwan

व्यवस्थित शक्ति के द्वारा हमारे जीवन का समस्त सांसारिक व्यवहार डिस्चार्ज हो रहा है। हमारी पाँचों इन्द्रियाँ कर्म के अधीन हैं। कर्मों के बंधन का कारण क्या है? यह धारणा की कि ‘मैं चंदुलाल हूँ’ वह कर्म बंधन का मूल कारण है। सिर्फ सच (तथ्य) जानने की आवश्यकता है। यह एक विज्ञान है। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने पाँच ज्ञान इन्द्रियों तथा उनके कार्यों की प्रणाली के बारे में बताया है। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, यह सब इन्द्रियों के अलग-अलग कार्य हैं। फिर अपना कार्य करने में कौन असफल रहा? ‘स्व’ रहा। ‘स्व’ का कार्य है जानना, देखना और हमेंशा आनंदमय स्थिति में रहना। हर इन्सान ज़िंदगी के बहाव के साथ आगे बह रहा है। यहाँ कोई भी कर्ता नहीं है। अगर कोई स्वतंत्र कर्ता होता तो वह हमेंशा बंधन में ही रहता। जो नैमित्तिक कर्ता है वह कभी भी बंधन में नहीं रहता। संसार प्राकृतिक परिस्थितियों के प्रभाव से उत्त्पन्न परिणाम पर ही चलता है। ऐसी परिस्थिति में ‘मैं कर्ता हूँ’ की गलत धारणा की उत्पत्ति होती है। इस कर्तापन की गलत धारणा की वजह से अगले जन्म के बीज बोए जाते हैं। इस संकलन में परम पूज्य दादाश्री ने कर्म के विज्ञान, कर्तापन, पाँच इन्द्रियों, अहंकार, मनुष्यों का स्वभाव, ज्ञानियों के प्रति विनय, पापों का प्रतिक्रमण, प्रायश्चित इत्यादि विषयों के बारे में बताया है। यह समझ साधकों को स्वयं के बारे में व संसार में दूसरों से कैसे शांतिपूर्वक व्यवहार करें, इस बारे में मदद करती है।

Atmasakshatkar: आत्मसाक्षात्कार

by Dada Bhagwan

जीवमात्र क्या ढूंढता है? आनंद ढूंढता है, लेकिन घड़ीभर भी आनंद नहीं मिल पाता | विवाह समारोह में जाएँ या नाटक में जाएँ, लेकिन वापिस फिर दुःख आ जाता है | जिस सुख के बाद दुःख आए, उसे सुख ही कैसे कहेंगे? वह तो मूर्छा का आनंद कहलाता है | सुख तो परमानेन्ट होता है | यह तो टेम्परेरी सुख हैं और बल्कि कल्पित हैं, माना हुआ है | हर एक आत्मा क्या ढूंढता है? हमेशा के लिए सुख, शाश्वत सुख ढूंढता है | वह ‘इसमें से मिलेगा, इसमें से मिलेगा | यह ले लूँ, ऐसा करूँ, बंगला बनाऊ तो सुख आएगा, गाड़ी ले लूँ तो सुख मिलेगा’, ऐसे करता रहता है | लेकिन कुछ भी नहीं मिलता | बल्कि और अधिक जंजालों में फँस जाता है | सुख खुद के अंदर ही है, आत्मा में ही है | अत: जब आत्मा प्राप्त करता है, तब ही सनातन (सुख) ही प्राप्त होगा |

Bhavna Sudhare Janmojanm: भावना सुधारे जन्मोजन्म

by Dada Bhagwan

जीवनव्यवहारात आपण सर्वांना असा अनुभव होत असतो कि जे नाही करायचे ते होऊन जात असते आणि जसे करायचे आहे तसे होत नाही ! जसेकी आपण निश्चय केला असेल कि , मला कोणालाही दु:ख दयायचे नाही , तरी पण आपल्याकडून दु:ख दिले जाते ! कठोरभाषा , टोचणारी भाषा नाही बोलायची , कोणाचा तिरस्कार नाही करायचे , विकारी भाव नाही करायचे .... तरी सुद्धा हे सर्व दोष आपल्याकडून होऊन च जात असतात . आणि तेव्हा मग आपण खूप हताश होतो , खेद होतो कि इतके धर्म केले , धार्मिक क्रिया केली , उपदेश ऐकले आणि त्याप्रमाणे आचरण करायचे निश्चय हि केला तरी देखील तसे होत का नाही ? ह्याचे रहस्य काय ? चूक काय ? त्यावर उपाय काय ? परमपूज्य दादाश्रींनी या सर्व प्रश्नांचे स्पष्टीकरण एका नव्याच रीतीने , अगदी वैज्ञानिक पद्धतीने इथे दिले आहे . दादाश्री सांगतात , वर्तन हे गेल्या जन्मात केलेल्या भावांचे परिणाम आहे , हे परिणाम असे सरळ सरळ बदलता येत नाहीत , त्यासाठी ‘कारण’ बदल करायला हवे , अर्थात नव्याने भाव बदल करावे . आणि त्यासाठी दिली नवकलम रुपी भावना !! ज्यात दादाश्रींनी सर्व शास्त्रांचे सार समावून घेतले आहे . जन्मोजन्म सुधारणारी हि भावना भावल्यामुळे “भाव “ मुळापासून बदलेल आणि आंतरशांती राहणार . इतकेच नव्हे तर त्याने आपले कितीतरी दोष हि धुतले जातील ! दुनियेत कोणा बरोबर वैर रहाणार नाही . सर्वान बरोबर मैत्री होऊन जाईल , एवढी गजबची शक्ती ठेवली आहे दादाश्रींनी ह्या नवकलमा मध्ये ! किंमत समजली तर काम होऊन जाईल !

Bhogte Tyachi Chuk: भोगतो त्याची चुक

by Dada Bhagwan

जो दुःख भोगतो त्याची चूक आणि जो सुख भोगतो ते त्याचे इनाम असते. पण भ्रांतीचा कायदा निमित्तास पकडतो. भगवंताचा कायदा हा खरा (रियल) कायदा, तो ज्याची चूक असेल त्यालाच पकडतो. तो कायदा तंतोतंत (अॅयक्झॅक्ट) आहे. व त्यात कोणी परिवर्तन करू शकणार असा नाहीच. जगात असा कुठलाच कायदा नाही जो कोणाला भोगयेला लावेल (दुःख देईल). जेंव्हा कधी आपल्याला आपल्या चुकीशिवाय भोगावे लागते, तेंव्हा हृदयास वेदना होतात आणि ते विचारत असतो - माझा काय अपराध आहे? मी काय चूक केली आहे? चूक कोणाची आहे? चोराची की ज्याचे चोरीला गेले त्याची? ह्या दोघांपैकी कोण भोगत आहे? "जो भोगतो त्याची चूक". प्रस्तुत संकलनात दादाश्रींनी "भोगतो त्याची चूक" चे विज्ञान प्रकट केले आहे. हे प्रयोगात आणल्याने आपल्या जीवनातील सर्व गुंतागुंती सोडवल्या जातील, असे हे अनमोल सूत्र आहे.

Chamatkar: चमत्कार

by Dada Bhagwan

आज के युग में जहाँ विज्ञान ने इतनी प्रगति की है वहाँ लोगो के बीच अभी भी बहुत सारी चमत्कार और जादू-टोना संबंधित भ्रामक मान्यताएँ है| चमत्कार का मतलब है हमारी समझ से परे किसी अद्वितीय शक्ति का अस्तित्व होना| हमारे भारत देश में लोगो को धर्म और चमत्कार के नाम पर गुमराह करना बहुत ही आसान है क्योंकि किसी अवांछित घटना से बचने के लिए लोग इन बातों पर आसानी से भरोसा कर लेते है| ज्ञानी पुरुष दादा भगवान हमें इन चमत्कारों में छुपी हुई सच्चाई से वाकिफ कराते हुए चमत्कार और सिद्धि के बीच का अंतर बताते है| सामान्यतः लोगो में खड़े होने वाले प्रश्न जैसे- चमत्कार कौन करता है? किस तरह वह हमारे जीवन को प्रभावित करता है? क्या हम कोई चमत्कार करके भगवान को प्रसन्न कर सकते है?||इत्यादि के उत्तर हमें इस पुस्तक में मिलते है| दादाश्री स्पष्टतौर पर यही बताना चाहते है कि आत्मा इन सभी बातों से परे हैं और आत्म-साक्षात्कार मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र सरल उपाय है| आध्यात्मिकता और चमत्कार के बीच का सही अंतर जानने के लिए यह किताब अवश्य पढ़े|

Chinta: चिंता

by Dada Bhagwan

चिंता से काम बिगड़ते हैं, ऐसा कुदरत का नियम है। चिंता मुक्त होने से सभी काम सुधरते हैं। पढ़े-लिखे खाते-पीते घरों के लोगों को अधिक चिंता और तनाव हैं। तुलनात्मक रूप से, मज़दूरी करनेवाले, चिंता रहित होते हैं और चैन से सोते हैं। उनके ऊपरी (बॉस) को नींद की गोलियाँ लेनी पड़ती हैं। चिंता से लक्ष्मी भी चली जाती है। दादाश्री के जीवन का एक छोटा सा उदाहरण है। जब उन्हें व्यापार में घाटा हुआ, तो वे किस तरह चिंता मुक्त हुए। “एक समय, ज्ञान होने से पहले, हमें घाटा हुआ था। तब हमें पूरी रात नींद नहीं आई और चिंता होती रहती थी। तब भीतर से उत्तर मिला की इस घाटे की चिंता अभी कौन-कौन कर रहा होगा? मुझे लगा कि मेरे साझेदार तो शायद चिंता नहीं भी कर रहे होंगे। अकेला मैं ही चिंता कर रहा हूँ। और बीवी-बच्चे वगैरह भी हैं, वे तो कुछ जानते भी नहीं। अब वे कुछ जानते भी नहीं, तब भी उनका चलता है, तो मैं अकेला ही कम अक्लवाला हूँ, जो सारी चिंताएँ लेकर बैठा हूँ। फिर मुझे अक्ल आ गई, क्योंकि वे सभी साझेदार होकर भी चिंता नहीं करते, तो क्यों मैं अकेला ही चिंता किया करूँ?” चिंता क्या है? सोचना समस्या नहीं है। अपने विचारों में तन्मयाकर हुआ कि चिंता शुरू। ‘कर्ता’ कौन हैं, यह समझ में आ जाए तभी चिंता जाएगी।

Daan: दान

by Dada Bhagwan

दान का अर्थ होता है किसीको कुछ देना| यह दान पैसों के रूप में हो सकता है, खाने के रूप में या सिर्फ किसी को खुश करने हेतु हो सकता है| दान देने से हमें खुशी मिलती है क्योंकि हमें लगता है कि हमने कुछ अच्छा काम किया है| दान करने से बहुत सारे फायदे होते है| जिसका विस्तारित वर्णन दादाश्री ने अपनी किताब ‘दान’ में किया है|इस किताब में दादाजी हमें यह भी बताते है कि किसे दान दे,क्या दान करना चाहिए, दान कितने प्रकार के होते है,दान करने के क्या फायदे है इत्यादि| दान करने से हम सिर्फ सामने वाले की मदद नहीं कर रहे पर खुद भी बहुत सारी खुशियाँ पाते है|दान का महत्व हमारे जीवन में क्या है, यह अधिक जानने के लिए, यह किताब ज़रूर पढ़े|

Guru Shishya: गुरू-शिष्य

by Dada Bhagwan

लौकिक जगात वडील-मुलगा, आई-मुलगी, पती-पत्नी अशी सर्व नाती असतात. त्यापैकी गुरू-शिष्य सुद्धा एक नाजूक नाते आहे. गुरूंना समर्पित झाल्यानंतर संपूर्ण आयुष्य त्यांच्याशी प्रामाणिक राहून परम विनयापर्यंत पोहोचून, गुरूआज्ञेप्रमाणे साधना करून सिद्धी प्राप्त करायची असते. परंतु खऱ्या गुरूची लक्षणे, तसेच खऱ्या शिष्याची लक्षणे कशी असतात याचे सुंदर विवेचन या पुस्तकात प्रस्तुत केले आहे. गुरूजनांसाठी या जगात विविध मान्यता प्रचलित आहेत. तेव्हा अशा काळात यथार्थ गुरू करताना लोक संभ्रमात पडतात. येथे अशाच पेचात टाकणारे प्रश्नांची समाधानकारक उत्तरे दादाश्रींनी प्रश्नकत्र्यांना दिली आहेत. सामान्य समजुतीनुसार गुरू, सदगुरू आणि ज्ञानीपुरुष-तिघांना एकसारखेच मानले जाते. जेव्हा की परम पूज्य दादाश्रींनी या तिघांमधील फरक अचूक स्पष्टीकरण देऊन स्पष्ट केला आहे. गुरू आणि शिष्य- दोघांनाही कल्याणाच्या मार्गावर प्रयाण करता येईल यासाठी सर्व दृष्टीकोनातून गुरू-शिष्याच्या नात्याची समज, लघुत्तम असून सुद्धा अभेद, अशा विलक्षण ज्ञानींची वाणी येथे संकलित करण्यात आली आहे.

Jagat Karta Kaun?: जगत कर्ता कोण?

by Dada Bhagwan

अनादि काळापासून जगाची वास्तविकता जाणण्यासाठी मनुष्य प्रयत्नशील आहे. परंतु तो खरे काय ते जाणू शकलेला नाही. मुख्यतः वास्तविकतेत, ‘मी कोण आहे ? या जगाला चालविणारा कोण आहे? तसेच जगाचा रचनाकार कोण आहे ?’ हे जाणून घ्यायला हवे. प्रस्तुत संकलनात खरा कर्ता कोण आहे, हे रहस्य उघड केले आहे. सामान्यतः काही चांगले झाले तर ‘मी केले’ असे तो मानतो आणि वाईट झाले तर दुसऱ्यावर आक्षेप घेतो की ‘त्याने बिघडविले.’ नाही तर ‘माझी ग्रहदशा बिघडली आहे’ असे बोलतो, किंवा ‘देवाने केले’ असा आरोप पण करतो. या सर्व राँग बिलीफस् (चुकीच्या मान्यता) आहेत. देव काय असा पक्षपात करणारा आहे का, की तो आपले नुकसान करील ? हे जग कोणी बनविले ? जर कोणी बनविणारा असेल तर मग त्याला कोणी बनविले? मग त्या बनविणाऱ्याला कोणी बनविले ? म्हणजे या गोष्टीचा अंतच नाही. आणि दुसरा असाही प्रश्न पडतो की, जर त्याला जग बनवायचेच होते तर त्याने असे जग का बनविले की ज्यात सर्व दुःखीच आहेत ? कोणीच सुखी नाही ? म्हणजे त्याची मौज आणि आमची शिक्षा, हा कसला न्याय? या काळात कर्त्या संबंधीचा सिद्धांत पहिल्यांदाच विश्वाला यथार्थपणे परम पूज्य दादा भगवानांनी दिला आहे, आणि तो असा आहे की जगात कोणीही स्वतंत्र कर्ता नाही. या जगाला रचणारा किंवा चालविणारा कोणीही नाही. हे जग सायंटिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्सने चालत आहे. ज्याला परम पूज्य दादाश्री ‘व्यवस्थित शक्ती’ असे म्हणतात. जगात कोणीही स्वतंत्र कर्ता नाही, परंतु सगळे नैमित्तिक कर्ता आहेत, सगळे निमित्त आहेत. गीतेत पण श्रीकृष्णाने अर्जुनाला सांगितले होते, हे अर्जुना! तू युद्धात निमित्तमात्र आहेस, तू युद्धाचा कर्ता नाहीस. प्रस्तुत पुस्तिकेत कर्ता कोण, याचे रहस्य परम पूज्य दादाश्रींनी साध्या सरळ भाषेत, हृदयात उतरेल अशा प्रकारे समजावून सांगितले आहे.

Je Ghadle Toch Nyay: जे घडले तोच न्याय

by Dada Bhagwan

निसर्गाच्या न्यायाला जर तुम्ही ह्या प्रकारे समजलात की “जे घडले तोच न्याय” तर तुम्ही ह्या संसारातून मुक्त होऊन जाल. लोक जीवनात न्याय आणि मुक्ती एकत्र शोधतात. ही पूर्ण विरोधाभासाची स्थिती आहे. हे दोन्ही तुम्हाला एकत्र मिळूच शकत नाहीत. प्रश्नांचा अंत आल्यावरच मुक्तीची सुरुवात होते. "अक्रम विज्ञानात" सर्व प्रश्नांचा अंत येतो, म्हणून हा खूपच सरळ मार्ग आहे. दादाश्रींचा हा मौल्यवान शोध आहे की निसर्ग कधीही अन्यायी झालेला नाही. जग हे न्यायस्वरूपच आहे. जे घडले तो न्यायच आहे. निसर्ग काही व्यक्ती किंवा देव नाही की ज्याच्यावर कोणाची सत्ता चालू शकेल. निसर्ग म्हणजे "साइंटिफिक सर्कम्स्टॅन्शियल एव्हिडेन्स”. कितीतरी संयोग (योगायोग) एकत्र आले की मग कार्य होते. दादाश्रींच्या ह्या संकलनात "जे घडले तोच न्याय" चे विज्ञान प्रस्तुत केले आहे. ह्या सूत्राचा जीवनात जेवढा उपयोग होईल, तेवढीच शांती वाढेल.

Karmache Vidnyan: कर्माचे विज्ञान

by Dada Bhagwan

कर्म काय आहे? कशा प्रकारे कर्म बांधले जाते? चांगल्या कर्मांनी वाईट कर्म धूतली जातात का? चांगली माणसं दु:खी का होत असतात? कर्म बांधणे थांबवायचे कसे? कर्मांमुळे बंधनात कोण आहे, शरीर की आत्मा? आपली कर्म संपतात तेव्हा आपला मृत्यु होतो का? संपूर्ण जग कर्माच्या सिद्धांताशिवाय दुसरे काहीच नाही. बंधनाचे अस्तित्व हे पूर्णपणे तुमच्यावरच अवलंबून आहे, तुम्ही स्वत:च त्यासाठी जबाबदार आहात. सर्वकाही तुमचेच आलेखन आहे. तुमच्या शरीराच्या बांधणीसाठी सुद्धा तुम्ही स्वत:च जबाबदार आहात. तुमच्या समोर जे येत आहे ते सर्व तुम्हीच रेखाटलेले आहे, इतर कोणीही त्यास जबाबदार नाहीच. अनंत जन्मांसाठी मात्र तुम्हीच ‘‘संपूर्णपणे आणि एकटेच जबाबदार आहात’’-परम पूज्य दादाश्री. कर्मांची बीजं मागच्या जन्मी टाकलेली होती त्याची फळे ह्या जन्मात मिळतात. तर ही कर्माची फळे देतो कोण? ईश्वर? नाही, त्यास निसर्ग किंवा व्यवस्थित शक्ति (सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स) म्हटले जाते, ती देत असते. परम पूज्य दादाश्रींनी स्वत:च्या ज्ञानाद्वारे कर्माचे विज्ञान जसे आहे तसे उघड केले आहे. अज्ञानतेमुळे कर्म भोगत असताना राग-द्वेष होतात जेणे करुन नवीन कर्म बांधली जातात, जी मग पुढच्या जन्मी परिपक्व होतात आणि ती भोगावी लागतात. ज्ञानी नवीन कर्म बांधायचे थांबवतात. जेव्हा सर्व कर्म संपूर्णपणे संपतात तेव्हा अंतिम मोक्ष होतो.

Karmache Vignana: कर्माचे विज्ञान

by Dada Bhagwan

कर्म काय आहे? कशा प्रकारे कर्म बांधले जाते? चांगल्या कर्मांनी वाईट कर्म धूतली जातात का? चांगली माणसं दु:खी का होत असतात? कर्म बांधणे थांबवायचे कसे? कर्मांमुळे बंधनात कोण आहे, शरीर की आत्मा? आपली कर्म संपतात तेव्हा आपला मृत्यु होतो का? संपूर्ण जग कर्माच्या सिद्धांताशिवाय दुसरे काहीच नाही. बंधनाचे अस्तित्व हे पूर्णपणे तुमच्यावरच अवलंबून आहे, तुम्ही स्वत:च त्यासाठी जबाबदार आहात. सर्वकाही तुमचेच आलेखन आहे. तुमच्या शरीराच्या बांधणीसाठी सुद्धा तुम्ही स्वत:च जबाबदार आहात. तुमच्या समोर जे येत आहे ते सर्व तुम्हीच रेखाटलेले आहे, इतर कोणीही त्यास जबाबदार नाहीच. अनंत जन्मांसाठी मात्र तुम्हीच ‘‘संपूर्णपणे आणि एकटेच जबाबदार आहात’’-परम पूज्य दादाश्री. कर्मांची बीजं मागच्या जन्मी टाकलेली होती त्याची फळे ह्या जन्मात मिळतात. तर ही कर्माची फळे देतो कोण? ईश्वर? नाही, त्यास निसर्ग किंवा व्यवस्थित शक्ति(सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स) म्हटले जाते, ती देत असते. परम पूज्य दादाश्रींनी स्वत:च्या ज्ञानाद्वारे कर्माचे विज्ञान जसे आहे तसे उघड केले आहे. अज्ञानतेमुळे कर्म भोगत असताना राग-द्वेष होतात जेणे करुन नवीन कर्म बांधली जातात, जी मग पुढच्या जन्मी परिपक्व होतात आणि ती भोगावी लागतात. ज्ञानी नवीन कर्म बांधायचे थांबवतात. जेव्हा सर्व कर्म संपूर्णपणे संपतात तेव्हा अंतिम मोक्ष होतो.

Karmcha Siddhant: कर्माचा सिद्धांत

by Dada Bhagwan

कर्म म्हणजे काय ? चांगली कर्मे वाईट कर्मांना धूऊ शकतात का ? चांगली माणसे दुःखी का असतात? कर्मबंधन होणे कसे थांबवायचे ? कर्मामुळे कोण बंधनात आहे, शरीर की आत्मा ? जेव्हा आपली सर्व कर्म संपतात तेव्हा आपला मृत्यू होतो. हे सारे जग म्हणजे दुसरे काही नाही, फक्त कर्माचा सिद्धांत आहे. बंधनाचे अस्तित्व पूर्णपणे तुमच्यावर अवलंबून आहे, त्यासाठी तुम्ही स्वतःच जबाबदार आहात. तुमच्या समोर जे काही येते त्याचे चित्रण तुम्हीच केलेले आहे; त्यासाठी इतर कोणी जबाबदार नाही. अनंत जन्मांसाठी ‘संपूर्णपणे फक्त’ तुम्हीच जबाबदार आहात. परम पूज्य दादाजी सांगतात कर्माची बीजे पूर्व जन्मात पेरली गेली होती आणि त्याची फळे या जन्मात मिळतात. त्या कर्मांची फळे कोण देतो? देव ? नाही. फळे निसर्ग किंवा आपण ज्याला ‘सायंटिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स’ म्हणतो, तो देतो. परम पूज्य दादाश्रींनी आपल्या ज्ञानाद्वारे कर्मांचे विज्ञान जसेच्या तसे उघड केले आहे. अज्ञानातेमुळे कर्म भोगतेवेळी राग-द्वेष होतात, त्यामुळे नवीन कर्मे बांधली जातात, जी मग पुढील जन्मात परिपक्व होतात आणि भोगावी लागतात. ज्ञानी नवीन कर्मबंधन होण्याचे थांबवितात. जेव्हा सर्व कर्मे पूर्णपणे संपतात, तेव्हा मोक्ष प्राप्ती होते.

Klesh Rahit Jeevan - Novel: क्लेश रहित जीवन - कादंबरी

by Dada Bhagwan

तुम्ही जीवनात होणाऱ्या क्लेशांपासून थकून गेला आहात का? आणि चकित आहात की हे नवीन क्लेश कुठून बरे उत्पन्न होतात? क्लेश रहित जीवनासाठी तुम्हाला फक्त पक्का निश्चय करायचा आहे की लोकांसोबत असलेला व्यवहार तुम्ही समताभावे पूर्ण कराल आणि तेही त्यात यश मिळेल की नाही याची चिंता केल्याशिवाय. मग एक दिवस तुम्हाला तुमच्या जीवनात नक्कीच शांती लाभेल. जर बायको-मुलांसोबत अधिक गुंतागुंतीचे कर्म असतील तर त्यांचा निकाल करण्यात जरा जास्त वेळ लागतो. जवळच्या माणसांसोबत असलेला गुंता हळूहळू संपुष्टात येतो. चिकट कर्मांचा निकाल करतेवेळी तुम्हाला अतिशय जागृत राहावे लागेल. जर तुम्ही निष्काळजीपणा आणि आळस दाखवलात तर हा सर्व गुंता सोडवण्यात तुम्हाला अपयश मिळेल. जर कोणी तुम्हाला कटू शब्द बोलला आणि त्यावर तुमचीही जर कटू वाणी निघाली तरीही तुमच्या बाहेरील व्यवहार इतका महत्वपूर्ण नाही कारण तुमची घृणा समाप्त झाली आहे आणि तुम्ही समभावे निकाल करण्याचा दृढ निश्चय केलेला आहे. बदला घेण्याच्या सर्व भावनांपासून मुक्त होण्यासाठी तुम्हाला परम पूज्य दादाश्रींकडे येऊन ज्ञान घेतले पाहिजे. मी तुम्हाला मुक्त होण्याचा रस्ता दाखवेल. जीवनात थकलेली माणसे मृत्यूला का कवटाळतात? याचे कारण ते जीवनातील ताण-तनावाचा सामना करु शकत नाही. इतक्या अधिक ताण-तनावात तुम्ही किती दिवस जगू शकाल? किड्या-मुंग्याप्रमाणे आजचा मनुष्य निरंतर त्रासलेला आहे. मनुष्य जीवन मिळाल्यानंतरही कोणी दु:खी का असावे? संपूर्ण जग दु:खातच आहे आणि जो दु:खात नाही तो काल्पनिक सुखात हरवलेला आहे. या दोन टोकांमध्ये जीवत झुलत आहे. आत्मज्ञान प्राप्त झाल्यानंतर तुम्ही सर्व कल्पना आणि दु:खांपासून मुक्त व्हाल. दादाश्रींच्या या पुस्तकात क्लेश रहित जीवन जगण्याच्या चाव्या आणि योग्य समज देण्यात आली आहे.

Klesh rahit jivan: क्लेश रहित जीवन

by Dada Bhagwan

क्या आप जीवन में उठनेवाले क्लेशों से थक चुके हो और हैरान हो कि नए क्लेश कहाँ से उत्पन्न हो जाते हैं ? क्लेश रहित जीवन के लिए आपको केवल पक्का निश्चय करना है कि आप लोगों के साथ सारा व्यवहार समभाव से निपटाओगे बिना सफलता की चिंता किये बिगैर | फिर एक दिन जीवन में शांति आकर ही रहेगी। यदि बीवी-बच्चों के साथ बहुत उलझे हुए कर्म हों तो निकाल करने में अधिक समय लग जाता है। करीबी लोगों के साथ उलझने क्रमशः ही समाप्त होती हैं। चिकने कर्मों का निकाल करते वक्त आपको अत्यंत जागृत रहना होगा। अगर आपने लापरवाही और सुस्ती दिखाई तो इन मामलों को सुलझाने में असफल होंगे। यदि कोई आपको कटु वाणी बोल दे और आपकी भी कटु वाणी निकल जाए, तो आपके बाहरी व्यवहार का कोई महत्व नहीं, क्योंकि आपकी घृणा समाप्त हो चुकी है और आपने समभाव से निकाल का दृढ़ निश्चय कर रखा है। “प्रतिशोध के सभी भावनाओं से मुक्त होने के लिए आपको परम पूज्य दादाश्री के पास आकर ज्ञान ले लेना चाहिए। मैं आपको इसी जीवन में प्रतिशोध की सभी भावनाओं से मुक्त होने का रास्ता दिखाऊँगा। जीवन से थके हुए लोग मृत्यु क्यों ढूँढते हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि वे जीवन के तनाव का सामना नहीं कर पाते। इतने अधिक दबाव में आप कितने दिन जीवित रह सकते हो ? कीड़े-मकोडों की तरह, आज का मनुष्य निरंतर संताप में है। मनुष्य का जीवन मिलने के बाद किसी को कोई दुःख क्यों हो? सारा संसार संताप में है और जो संताप में नहीं है, वे काल्पनिक सुखों में खोए हुए हैं। इन दोनों छोरों के बीच संसार झूल रहा हैं। आत्मज्ञानी होने के बाद, आप सभी कल्पनाओं और वेदनाओं से मुक्त हो जाओगे।’’ दादाश्री की इस पुस्तक में क्लेश रहित जीवन जीने की चाबियाँ और समझ दी गई हैं।

Krodh: क्रोध

by Dada Bhagwan

हमें क्रोध क्यों आता है? क्रोध आने के कुछ कारण यह है - जब कोई भी कार्य हमारी इच्छानुसार नहीं होता या हमें यह लगे कि सामनेवाला व्यक्ति हमारी बात नहीं समझ रहा या फिर किसी बात पर किसी के साथ मनमुटाव हो तब| लेकिन क्रोध आने का कोई भी निश्चित कारण नहीं होता| कई बार हमारी समझ से हमें यह लगता है कि, हम जो भी सोच रहे है या जो कुछ भी कर रहे है वह सब सही ही है| पर, उस वक्त यदि कोई दूसरा व्यक्ति आकार हमें गलत साबित करे तो हम अपना आपा खो बैठते है और उसपर अत्यंत क्रोधित हो जाते है| क्रोध करने से ना सिर्फ सामनेवाला व्यक्ति दुखी होता है पर हमें भी उतना ही दुःख होता है| कई किस्सों में यह देखा गया है कि जिससे हम सबसे अधिक प्यार करते है, उसपर ही सबसे ज्यादा गुस्सा भी करते हैं| इस तरह बिना सोचा समझे गुस्सा करने से कई बार हमारे संबंधो में भी काफी तनाव पैदा हो जाता है जिसका फल अच्छा नहीं होता| किस प्रकार हम अपने क्रोध पर काबू पा सकते है या किसी और क्रोधित व्यक्ति के साथ कैसा बर्ताव करे ताकि हमारे औरों से प्रेमपूर्वक सम्बन्ध बने रहे, इन प्रश्नों का हल पाने के लिए आगे पढ़े|

Manav Dharma: मानवधर्म

by Dada Bhagwan

मनुष्य जीवनाचे ध्येय काय आहे? माणूस जन्म घेतो तेव्हापासूनच संसार चक्रामध्ये फसून लोकांच्या म्हणण्याप्रमाणे वागतो.परम पूज्य दादा भगवान म्हणतात, मनुष्य जन्म चार गतिंचे जंक्शन आहे. जिथून देवगति, जनावरगतिमध्ये जाण्याचा रस्ता मोकळा होतो. ज्या प्रकारचे बी पेरले आहे आणि ज्या कारणांचे सेवन केले आहे, त्या गतिमध्ये जावे लागते.मग या जन्म मरणाच्या फेऱ्यातून मुक्ती केव्हा मिळेल? दादाजी आपल्याला सांगतात की, ‘मानवता’ किंवा ‘मानवधर्माची’ सर्वोत्तम व्याख्या हीच आहे की, कोणी तुम्हाला दुःख दिले, ते जर तुम्हाला आवडत नसेल तर तुम्ही सुद्धा दुसऱ्यांना दुःख होईल असा व्यवहार करू नये. पुढच्या जन्मी नर्कगति किंवा जनावर गतिमध्ये जायचे नसेल तर मानवधर्माचे नेहमी पालन केले पाहिजे. याविषयी अधिक माहिती प्राप्त करण्यासाठी हे पुस्तक अवश्य वाचा. आणि आपले मनुष्य जीवन सार्थक करा.

Mi Kon Aahe?: मी कोण आहे?

by Dada Bhagwan

केवळ जीवन जगणे हे जीवन नाही. जीवन जगण्याचे काही ध्येय, काही लक्ष्य तर असेल ना ! जीवनात काही उच्य लक्ष्य प्राप्त करायचे ध्येय असायला हवे. जीवनाचे खरे ध्येय "मी कोण आहे" ह्या प्रश्नाचे उत्तर जाणून घेणे हे आहे. मागच्या अनंत जन्मांचा हा अनुत्तरित प्रश्न आहे. ज्ञानीपुरुष परमपूज्य दादाश्रींनी मूळ प्रश्न "मी कोण आहे?" ह्याचे सहज उत्तर सांगितले आहे. ह्या पुस्तकात, मी कोण आहे? मी कोण नाही? स्वतः कोण आहे? माझे काय आहे? माझे काय नाही? बंधन काय आहे? मोक्ष काय आहे? ह्या जगात भगवान आहेत का? ह्या जगताचा 'कर्ता' कोण आहे? भगवान 'कर्ता' आहेत का नाहीत? भागवानांचे खरे स्वरूप काय आहे? 'कर्त्या'चे खरे स्वरूप काय आहे? जग कोण चालवतो? मायेचे स्वरूप काय आहे? जे आपण बघतो आणि जाणतो ते भ्रम आहे की सत्य आहे? व्यावहारिक ज्ञान तुम्हाला मुक्त करू शकते का? ह्या सर्व प्रश्नांची दादाश्रींनी अचूक (अॅाक्युरेट) उत्तरे दिली आहेत.

Mi Kon Aahe - Novel: मी कोण आहे - कादंबरी

by Dada Bhagwan

फक्त जगण्यापलीकडे जीवन काय आहे हे स्वतःला कोणी विचारले नाही? जीवनाचा खरा हेतू काय आहे? फक्त जगण्यापेक्षा उच्च उद्देश असणे आवश्यक आहे. “मी कोण आहे?” या पुस्तकात ज्ञानी पुरुष (स्वत: च्या ज्ञानाचे मूर्तिमंत) दादा भगवान वर्णन करतात की अध्यात्मिक साधकांच्या वयस्क-जुन्या अनुत्तरीत प्रश्नाचे उत्तर शोधणे हाच अंतिम जीवनाचा हेतू आहे: मी कोण आहे आणि कोण आहे जीवनात घडणार्‍या सर्व गोष्टींचा 'कर्ता'? दादाश्री असेही प्रश्न सोडवतात: “जीवनाच्या प्रवासाचे स्वरूप काय आहे?”, “जगाची निर्मिती कशी झाली?”, “देव कसा शोधायचा?”, “मी स्वतःची शुद्ध आत्मा कशी अनुभवू?”, आणि “मुक्ति म्हणजे काय?” शेवटी, दादाश्री वर्णन करतात की स्वत: चे ज्ञान प्राप्त करणे हे जीवनाचा प्राथमिक हेतू आहे आणि खरोखरच या अध्यात्माची सुरूवात आहे. आत्मज्ञान प्राप्त केल्यावर, आध्यात्मिक विकास सुरू होतो, ज्यानंतर एखाद्या व्यक्तीस अंतिम मुक्ती किंवा मोक्ष मिळू शकेल.

Mrutyuveli, Aadhi Ani Nantara: मृत्यूवेळी, आधी आणि नंतर

by Dada Bhagwan

मृत्यु हे आपल्या जिवनातला अविभक्त भाग आहे. आपल्या कुटूम्बात किंवा शेजारी कोणाचा मृत्यु पाहल्या वर माणसाला भीति वाटते आणि मृत्यु संबंधित वेग-वेगळे कल्पना करतो. परम पूज्य दादा भगवानी आपल्या आत्मज्ञाना नी लोकांना या रहस्य संबंधित पुष्कळ प्रश्ना चे उत्तर दिले आहे. जन्म आणि मृत्यु चा चक्र, पुनर्जनम, जन्म-मृत्यु मधुन मुक्ति, मोक्षची प्राप्ति इत्यादी प्रश्न चे उत्तर आपल्याला या पुस्तक ‘मृत्यु चे रहस्य’ मधुन मिळतात. दादाश्रीनी मृत्युच्या संबंधित सर्व चुकिच्या मान्यतान्ची खरी समझ देऊन, आपल्या जीवनाचा मुख्य उद्देश्य काय आहे है, हे या पुस्तकात संगीतला आहे.

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